Sunday, February 14, 2010

बिहार - गांवों की चमाचम सड़कें करती हैं स्वागत


करीब 18 माह के लंबे अरसे के बाद पिछले दिनों बिहार जाने का सुअवसर मिला। वैसे गत वर्ष मई में भी गया था, लेकिन समयाभाव में पटना से ही लौट आने के कारण यह लकीर छूकर आने भर की यात्रा रह गई थी। इस बार दर्जनों गांवों की यात्रा के क्रम में डेढ़-दो सौ किलोमीटर का सफर मोटरसाइकिल और बसों से किया। मैंने पहले भी कई बार कहा है कि किसी राजनीतिक दल से मेरा वास्ता नहीं है, लेकिन आंखों देखी सच को झुठलाना भी पाप से कम नहीं है। सो इस बार गांवों में जो तस्वीर दिखी, उसके लिए बिहार के मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार वाकई प्रशंसा के हकदार हैं। जी हां, जिन गांवों में पहले कच्ची सड़क से जाना पड़ता था, (जो कई स्थानों पर पगडण्डी सी हुआ करती थी), वहां इस बार पक्की चमचमाती सड़क से हमने सफर किया। इसमें न तो कहीं धचके थे और न ही धूल हमारे सिर पर सवार होने को आतुर थी। हां, कहीं-कहीं धूल थी भी, तो वहां सड़क के लिए हो रही मिट्टी भराई के कारण थी। स्थानीय बाशिन्दों में इस बात का सन्तोष और खुशी थी कि उनके गांव में भी अब पक्की सड़क होगी। बिहार के बड़बोले तत्कालीन मुयमन्त्री लालू प्रसाद यादव ने अपने शासनकाल में सूबे की सड़कों को हेमामालिनी के गाल जैसी करने के दावे किए थे, लेकिन तब वहां की सड़कों के गड्ढे चेचक के दाग से भी कहीं अधिक गहरे हुआ करते थे। बस, ट्रक, जीप, कार से तीस-चालीस किलोमीटर के सफर में टायरों का एक-दो बार पंचर होना लाजिमी था। ऐसे में मितभाषी मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार ने सड़कों का कायकल्प कर दिया है।
पटना में भी सड़कों का स्तर काफी सुधर गया है। यहां की सड़कों को देखकर लगता है कि आप किसी बड़े प्रदेश की राजधानी में हैं। ऐसा नहीं है कि कमियां नहीं हैं, अभी भी पटना में ही बहुत सुधार की दरकार है, लेकिन जिस गति से काम हो रहा है, यदि यह सब अबाध गति से चलता रहा तो आने वाले तीन-चार साल में हालात और भी बेहतर होंगे।
मुंह चिढ़ाता राजधानी का बस स्टैण्ड
पहले पटना रेलवे जंक्शन से बाहर निकलते ही महावीर मन्दिर से थोड़ी दूर पर ही वीर कुंवर सिंह बस स्टैण्ड हुआ करता था, जिसे शहर में होने वाले ट्रैफिक जाम से निजात दिलाने के लिए अब जंक्शन के दक्षिणी ओर करबिगहिया में शिफ्ट कर दिया गया है। वहां कम स्थान होने के कारण पहले बहुत सारी दिक्कतें थीं, लेकिन नए स्टैण्ड पर काफी जगह होने के बावजूद अव्यवस्थाएं भी उसी अनुपात में पसरी हुई हैं। गन्दगी का आलम ऐसा है कि वहां जाकर अगले गन्तव्य के लिए बस पकड़ना काफी मुसीबत भरा होता है। यह तो पक्की बात है कि आज के दौर के राजनेता बस से सफर नहीं करते, तो उन्हें बस स्टैण्ड के हालात से वास्ता नहीं पड़ता होगा, लेकिन आमजन को होने वाली परेशानियों से उनका बेखबर रहना तो किसी भी सूरत में अच्छी बात नहीं है। विशेष रूप से तब, जब इस तथाकथित अन्तरराज्यीय बस स्टैण्ड के पास ही चाणक्य राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय भी शुरू किया गया है, इस ओर से नीति नियन्ताओं का आंखें मून्दे रहना कदापि शोभनीय नहीं है। आशा की जानी चाहिए, अगली यात्रा तक बस का सफर तो सुहाना होगा ही, बस स्टैण्ड के हालात भी अवश्य ही सुधर जाएंगे।

1 comment:

Udan Tashtari said...

सड़को की स्थिति में सुधार का सुन कर अच्छा लगा.