Saturday, February 20, 2010

बारह बजे लेट नहीं, चार बजे भेंट नहीं

इस बार पटना से वापसी में अकेला ही था। हावड़ा-जम्मूतवी हिमगिरि एक्सप्रेस से लखनऊ तक आना था। सफर दिन का था और मैं अकेले ही था, सो सहयात्रियों से बातचीत शुरू हो गई। सहयात्रियों में पटना सचिवालय में कार्यरत दो बड़े अधिकारी थे। इनमें से एक अपनी बिटिया को बैंक पीओ की लिखित परीक्षा दिलवाने के लिए लखनऊ जा रहे थे, तो दूसरे बिटिया को बैंक पीओ के लिए ही ज्वाइन कराने जा रहे थे। आपस में उनकी भी जान-पहचान नहीं थी, लेकिन जब उनकी बातचीत शुरू हुई, तो पता चला कि वे दोनों एक ही स्थान पर काम करते हैं। एक वित्त विभाग में थे तो दूसरे अभियन्त्रण सेवा में।
मेरी सहज जिज्ञासा वर्तमान दौर में सरकारी कामकाज के बारे में जानने की हुई, तो एक अधिकारी की बिटिया के मुंह से सहज ही निकल पड़ा-बारह बजे लेट नहीं, चार बजे भेंट नहीं। मैंने इसे थोड़ा और स्पष्ट करने को कहा तो उसका कहना था कि पहले तो यह आलम यह था कि सरकारी दफ्तरों में अधिकारियों-कर्मचारियों को केवल वेतन से ही वास्ता था, काम से उनका कोई लेना-देना नहीं होता था। राज्य प्रशासन के सबसे बड़े दफ्तर शासन सचिवालय में दोपहर 12 बजे तक तो कर्मचारी-अधिकारी पहुंचते ही नहीं थे और पहुंचते भी थे तो आपस में गप्पें हांकने और चाय-नाश्ता करने के बाद चार बजे तक विदा हो लेते थे।
मैंने अभियन्त्रण सेवा के अधिकारी से इन दिनों सचिवालय में उनकी उपस्थिति समय के बारे में पूछा तो मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार की सख्ती से चिढ़े हुए से लगे। उन्हें शिकायत थी कि वर्तमान में तो सवेरे साढ़े नौ बजे ऑफिस में आ ही जाना पड़ता है। 10 मिनट से अधिक देरी होने पर उपस्थिति पंजिका सीनियर अधिकारी के पास चली जाती है और अगले दिन स्पष्टीकरण देना पड़ता है।
जहां तक मैं समझता हूं, माता-पिता अपनी सन्तान के लिए पहले रोल मॉडल होते हैं। यदि सन्तान ही माता-पिता की कर्तव्यहीनता या कामचोरी का मजाक बनाए, तो इससे बुरी बात और कोई नहीं हो सकती। यदि माता-पिता के आचरण में ही कमी होगी, तो वे अपनी सन्तान के लिए रोल मॉडल कैसे बन पाएंगे और उनके लिए आदर्श कैसे स्थापित कर पाएंगे। राज्य और राष्ट्र के चरित्र और विकास की बात तो तब की जाए, जब इसकी सबसे छोटी इकाई परिवार में सब कुछ उचित और सन्तुलित हो।

1 comment:

Rajani Ranjan said...

bahut achchhi bat kahi aapne. kuvyavastha ke liye ham samaj aur shasan ko dosh dete hain parantu sach puchha jay to sudhar ki shuruat hamen swayam se karani chahiy.--rajani ranjan