मेरे जमाने में बच्चे सरकारी स्कूल में ही पढ़ा करते थे और यह माता-पिता के लिए भी किसी तरह से कमतरी का द्योतक नहीं होता था। मेरी स्कूली शिक्षा पूरी होने तक ही नहीं, बल्कि कॉलेज शिक्षा तक यह हाल बना रहा। वर्ष 1990 के बाद सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर कुछ इस तरह गिरता गया कि अभिभावक संसाधन नहीं होने के बावजूद बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाना मजबूरी होने लगी थी। इसके फलस्वरूप सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या दिन-ब-दिन कम होने लगी। पिछले 10-15 साल में जब भी गांव जाता था तो मित्रों की बातचीत में शिक्षा का गिरता स्तर महत्वपूर्ण हुआ करता था, लेकिन जब नीतियां बनाने वाले ही इन बातों से अनभिज्ञ हों तो आम आदमी क्या कर सकता है। इस बार पड़ोस की कई लड़कियों को स्कूल यूनिफॉर्म में देखा तो बरबस ही पूछ बैठा कि आसपास कोई कॉन्वेंट या प्राइवेट स्कूल खुला है क्या? पता चला कि इन लड़कियों को सरकार की ओर से स्कूल यूनिफॉर्म के लिए राशि उपलब्ध कराई जा रही है। इतना ही नहीं, सरकारी स्कूलों में कक्षा 9-10 में पढ़ने वाली लड़कियों को सरकार की ओर से साइकिल भी उपलब्ध कराई जा रही है, ताकि घर से स्कूल की दूरी उनकी शिक्षा में बाधक नहीं बने। यह भी पता चला कि मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार ने इस योजना का विस्तार कर लड़कों के लिए भी साइकिल उपलब्ध कराने की घोषणा कर दी है, जिसे शीघ्र ही अमली जामा पहनाया जाएगा। जानकर खुशी हुई कि प्रदेश में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सरकार कुछ कर तो रही है। इसके साथ ही अपना गुजरा जमाना भी याद आ गया, जब अपने गांव से हम दर्जनों साथी पैदल ही चार-पांच किलोमीटर की दूरी तय कर बिना नागा हाई स्कूल जाया करते थे।
शिक्षा के प्रति लोगों का रुझान इस कदर बढ़ गया है कि स्कूलों के भवन छोटे पड़ने लगे हैं। इसे देखते हुए बड़े विजन वाले मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार ने स्कूलों को क्रमोन्नत करने और उसी अनुपात में संसाधन उपलब्ध कराने के प्रयास भी जारी रखे हैं। यदि यह सब इसी तरह जारी रहा तो उम्मीद की जा सकती है कि शिक्षा को वांछित गति मिलेगी और बिहार एक बार फिर नालन्दा, तक्षशिला के गौरवशाली पथ पर अग्रसर हो सकेगा।
कितने कमरे!
6 months ago
1 comment:
wakai shiksha ko badhawa dene k liye is tarah ki pahal ki jaroorat hai
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