Wednesday, September 30, 2009

...ज्यों मूक को मिल गई वाणी

आज रात दो बजे यूं ही कुछ मित्रों के ब्लॉग पढ़ रहा था कि अनायास ही ब्लॉगवाणी डॉट कॉम खोलने के लिए माउस क्लिक कर दिया। आज तो सचमुच कमाल हो गया वरना ब्लॉगवाणी की विदाई का संदेश देखकर मन खिन्न हो उठता था। ऐसा लगता है जैसे बहुत कुछ ऐसा खो गया है जो दिल की गहराइयों तक पैठ बना चुका था। मेरा आशय महज इन बातों से नहीं हुआ करता था कि ब्लॉगवाणी पर मुझे कितने लोगों ने पसंद किया या मेरा ब्लॉग सबसे अधिक पढ़े जाने वाले ब्लॉग की सूची में कितनी बार आया, बल्कि ब्लॉगवाणी खोलने के बाद पुस्तक की इंडेक्स की तरह पृष्ठ दर पृष्ठ आलेखों पर एक नजर डालना और पहली नजर में पसंद आने पर आलेख को पूरा पढ़ पाना। इतना ही नहीं, ब्लॉगवाणी ने एकाधिक बार कई सालों से बिछड़े मित्रों के ब्लॉग पढ़ने और उनसे संवाद साधने का अवसर भी उपलब्ध कराया।
ब्लॉगवाणी के बंद होने के बाद कई ब्लॉगर मित्रों से फोन पर अपनी व्यथा शेयर की, तो उधर भी पीड़ा कुछ वैसी ही महसूस हुई। ऐसा लग रहा था जैसे शब्दों से स्वर छिन गए हों। मुझ सरीखे मूकों को वाणी प्रदान करने के लिए ब्लॉगवाणी के नियंताओं का बहुत-बहुत स्वागत और हृदय से साधुवाद।

2 comments:

संगीता पुरी said...

बहुत सही कह रहे हैं आप !!

biharsamajsangathan.org said...

Dear Manglamji

Bahut sahi kah rahe hai.

Suresh Pandit