Sunday, September 20, 2009

देव तुम्हारे, मंत्र हमारे - यह कैसी घुसपैठ ?


आजकल मीडिया में चीन के घुसपैठ की खबरें रोज ही आ रही हैं। होना तो यह चाहिए कि हमारे देश की सीमाओं की ओर जो आंखें उठें, उन्हें बिना समय गंवाए फोड़ दिया जाए, लेकिन जब देश का शीर्ष नेतृत्व ही लचर व्यक्तित्व के हाथों में है तो कोई क्या करे। खैर, हमारे राजनेता जो भी करें, इस देश की सेना पर हमें पूरा भरोसा है कि सीमा की ओर बढ़ने वाले किसी भी हाथ को मरोड़ने की ताकत उनमें है।
मैं यहां दूसरे घुसपैठ की बात कर रहा हूं जो पिछले कई सालों से चल रही है और हमारे नीति नियंता हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। शनिवार को शारदीय नवरात्र शुरू हुए। इससे दो दिन पहले किसी अखबार में खबर पढ़ी कि नवरात्र में पूजन के लिए चीन में बनी मां भगवती की प्रतिमाएं बाजार में आ गई हैं। यह कैसी बात है कि होली पर चाइनीज पिचकारियां और मकर संक्रांति पर चीन में बने पतंगों और मांझे की बाजार में बाढ़ आ जाती है। अभी आने वाले दिनों में दीपावली भी रंग-बिरंगी चाइना मेड बिजली के बल्वों की लड़ियां भी बाजार में धड़ल्ले से बिकेंगी। बिजली का खरचा बचाने वाली सीएफएल लाइटों में भी चाइनीज सीएफएल का बाजार में काफी दखल है। खरीदने वालों का तर्क होता है कि चाइनीज सामान की गुणवत्ता भले दोयम दरजे की हो, वे टिकाऊ नहीं होते हों, लेकिन उनकी कीमत भारतीय उत्पादों की तुलना में काफी कम होती है।
ऐसे में सरकार से मेरा सवाल है कि यदि चीन सस्ती दरों पर बिकने वाली वस्तुएं बेचकर मुनाफा कमा सकता है तो हमारे देश की कंपनियां ऐसा क्यों नहीं कर पातीं। व्यापारियों के मुनाफे पर मैं बंदिश लगाने का पक्षधर कदापि नहीं हूं, लेकिन कम लाभ से अधिक बिक्री करके भी तो मुनाफा बढ़ाया जा सकता है।
बचपन में सीख मिली थी कि किसी रेखा को बिना मिटाए छोटी करने की तरकीब है कि उसके नीचे बड़ी रेखा खींच दी जाए। हमारे देश के राष्ट्रप्रेमी व्यापारी भी इस तरकीब से अपना मुनाफा बरकरार रखते हुए चीनी घुसपैठ से देश को बचा सकते हैं। अन्यथा बच्चे हमारे खिलौने उनके, उड़ान हमारी डोर उनकी और मंत्र हमारे, देव उनके का राग आने वाले दिनों में हमारे देश पर काफी भारी पड़ सकता है।

2 comments:

संगीता पुरी said...

आपकी चिंता सही है .. पर सरकार जागे तब ना !!

biharsamajsangathan.org said...

Aap ne sahi leekha hai. yeh chinta ki baat hai, ki sarkar isake bade me sochtee hi nahi, jane kab tak jage.

Suresh Pandit