‘ एक और प्रॉब्लम है।
मैं कभी प्लेन में नहीं बैठी। ’
फिल्म ‘सेक्रेट सुपरस्टार’ की नायिका जब अपने स्कूली दोस्त से यह बात कहती है तो महसूस होता है कि हवाई सफर को लेकर अधिकांश भारतीय की ऐसी ही स्थिति है। वैज्ञानिक अपनी दिन-रात की मेहनत से अनुसंधान, आविष्कार करते हैं ताकि जनसामान्य का जीवन सुगम हो सके। दुश्वारियों का अंत हो सके।
इसके बाद बारी आती है, जनप्रतिनिधियों की जो आधुनिकतम तकनीक का लाभ आमजन तक पहुंचाएं। इसी उम्मीद से हर पांच साल बाद जनता अपना अमूल्य वोट देकर अपना जनप्रतिनिधि चुनती भी है, मगर अफसोस...एमएलए-एमपी चुने जाने के बाद जब उसे सारी सुविधाएं मुहैया हो जाती हैं तो वह आमजन को होने वाली असुविधाओं से मुंह मोड़ लेता है। उनकी तरफ देखना भी पसंद करता। उसकी दृष्टि संकुचित हो जाती है या फिर वह जान- बूझकरआंखें बंद कर लेता है।
हमारे सभी राजनेता ट्रेनों के फर्स्ट क्लास में सफर करते हैं या फिर हवाई जहाज में। ट्रेनों के इन कूपों में भारी-भरकम पर्दे लगे होते हैं, जिनके आर- पार कुछ दिखाई नहीं देता। वहीं, हवाई जहाज की खिड़की अव्वल तो काफी छोटी होती है। और फिर ऊपर से आसमान से धरती की हकीकत नजर ही कहां आती है, ऐसे में आमजन को होने वाली दुश्वारियों और उसकी आंखों में पलते सपनों के बारे में वे कैसे जान पाएंगे।
...और इस सबका नतीजा यह होता है कि चुनाव दर चुनाव जनप्रतिनिधि भले ही बदलते जाएं, जनता के लिए हालात नहीं बदलते। इसी का नतीजा है कि आजादी के 70 साल बाद भी आम भारतीय के लिए हवाई सफर कल्पना लोक की ही बात है। शायद हमारे नुमाइंदों को इस बात का भय भी सताता है कि यदि आम जनता भी उन्हीं सुख-सुविधाओं का उपभोग करने लगेगी तो नेता होने का उनका रुतबा-रुआब कैसे कायम रह पाएगा।
ऐसे में अपनी कविताओं से मुजफ्फरपुर का नाम हिन्दी साहित्य के क्षितिज पर पहुंचाने वाले प्रसिद्ध कवि जानकी वल्लभ शास्त्री की ये पंक्तियां बरबस ही जेहन में धमाचौकड़ी मचाने लगती हैं :
जनता धरती पर बैठी है,
नभ में मंच खड़ा है।
जो जितना है दूर मही से,
उतना वही बड़ा है।
20 दिसंबर 2017
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