भीतर से सब एक
यात्रियों के चेहरे पर अभिजात्य होने का मुखौटा अब पूरी तरह उतर चुका था। ट्रेन में जैसे स्लीपर क्लास में मिडिल और अपर बर्थ वाले बढ़ती उम्र, कमर दर्द का वास्ता देकर सहयात्री से लोअर बर्थ एक्सचेंज करने का अनुरोध करते हैं, फ्लाइट में भी कुछ ऐसी ही अनुभूति हुई।
मेरी सीट अंदर से किनारे वाली थी। एक नौजवान ने मुझसे आग्रह किया कि मैं सीट की अदला-बदली कर लूं तो वह अपनी महिला सहयात्री के साथ सफर का लुत्फ उठा सकेगा। मैं उसका अनुरोध स्वीकार कर बगल वाली रो में समान स्थिति में आसीन हो गया। करीब दो घंटे के सफर में जब भी हमारी नजरें मिलतीं, वह नौजवान कृतज्ञता का भाव जताने से खुद को नहीं रोक पाता।
इस बीच चाय-नाश्ता आदि परोसे जाने की उद्घोषणा हुई। आम तौर पर किसी चीज की कीमत बढ़ जाने पर हम ‘महंगाई आसमान पर पहुंची’कहते हैं, यहां तो चीजें वाकई आसमान में बिक रही थीं, सो दाम दस गुना से भी अधिक होना लाजिमी था।
ऐसे में चाय न पीने की अपनी आदत का बड़ा फायदा होता नजर आया। करीब डेढ़ घंटे बाद ही गंतव्य तक पहुंचना था, सो इतनी देर के लिए नाश्ता को भी मुल्तबी करना ही मुनासिब समझा। सर्द सुबह में वनस्पति तेल के भाव पानी खरीदने का कोई मतलब ही नहीं था।
यह तो मेरा गणित था, लेकिन अधिकतर सहयात्री मेरी ही सोच के थे। जैसे सही शब्दों में
‘इकोनॉमी’ क्लास के यात्री होने की भूमिका का मन से निर्वाह कर रहे हों। ऐसे में इक्का-दुक्का ऑर्डर आने का मलाल एयर होस्टेस के चेहरे पर साफ नजर आ रहा था। थोड़ी ही देर में उद्घोषणा हुई कि बंगलोर बस आने को ही है। वहां का अनुकूल मौसम हमारी मेजबानी के लिए तैयार है। ...और वाकई बंगलोर आ गया। वहां का हवाई अड्डा लखनऊ के मुकाबले काफी आलीशान है।
(क्रमश:)
19 दिसंबर 2017
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