Sunday, December 24, 2017

बस से बंगलोर-2


हवाई सफर का हव्वा मैं इधर मोबाइल पर मित्रों के फेसबुक पोस्ट, वॉट्सएप संदेश और कादम्बिनी के आलेख पढ़ने में लीन था, उधर घड़ी की सुइयां भी धीरे-धीरे तारीख बदलने में जुटी थीं। इस बीच इक्के-दुक्के यात्री आते रहे। अभिजात्य वर्ग के संस्कारों का असर कहें कि कुर्सियां खाली होने के बावजूद लोग एयर पोर्ट के लाउंज में किसी के बगल में बैठने के बजाय अलग-थलग बैठना ही पसंद कर रहे थे। ऐसे में हवाई सफर का हव्वा मेरे दिलो-दिमाग में तरह-तरह के सवाल जगा रहा था। इस बीच करीब पौने चार बज गए और यात्रियों के साथ ही एयरपोर्ट कर्मियों की हलचल भी बढ़ने लगी। देखते ही देखते यात्री बिना किसी निर्देश के स्वत : स्फूर्त से सामान चेक कराने के लिए एक काउंटर पर जाकर खुद-ब-खुद कतार में खड़े होने लगे। मैं भी उनके पीछे खड़ा हो गया। मेरे पास महज एक बैग था, सो गंतव्य पूछने के बाद मुझे इंडिगो के काउंटर पर जाने को कहा गया। वहां वेब चेक इन का कंप्यूटर प्रिंट दिखाने पर चिकने मोटे कागज पर छपा टिकट मिला। साथ ही गेट नंबर तीन पर जाने को कहा गया। लाइन में खड़े एक यात्री से पूछा तो पता चला कि इसी प्रिंटेड टिकट को भारी-भरकम भाषा में बोर्डिंग पास कहा जाता है। गेट नंबर तीन पर पहुंचा तो सुरक्षा जांच के लिए लोग लाइन में खड़े थे। जो लोग रेलवे स्टेशन पर जीआरपी और आरपीएफ के जवान के सवालों पर उन्हें आंखें दिखाने और हड़काने से बाज नहीं आते, वे अच्छी-खासी सर्दी के बावजूद जैकेट और कोट उतारकर खड़े थे। यह हवाई हड्डे के वातावरण का असर था या फिर सीआईएसएफ के चौकस कर्मचारियों की मुस्तैदी का, मैं समझ नहीं पा रहा था। खैर, सामान और खुद की सुरक्षा जांच के बाद अंदर लॉबी में जाकर बैठ गया। (क्रमश:) 17 दिसंबर 2017

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