Sunday, September 27, 2009

आस्था अपार, उल्लास अदृश्य


शक्ति की आराधना के पर्व शारदीय नवरात्र की पूरणाहुति महानवमी पर रविवार को हुई। आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से शुरू हुए इस पर्व में श्रद्धालुओं ने अपनी श्रद्धा और सामरथ्र्य के अनुसार मां भगवती की आराधना की। संपूर्ण भारतवर्ष में मां भगवती की आराधना हुई। गुलाबीनगरी में रह रहे बंगाली समाज के लोगों ने शहर में कई स्थानों पर सामूहिक दुगाü पूजा महोत्सवों का आयोजन किया। इन महोत्सवों में स्थानीय लोगों की भागीदारी न के बराबर रही। ऐसे में यह बात कचोटती है कि उनके मन में मां भगवती के प्रति आस्था की कोई कमी नहीं है, या यूं कहें कि चहुंओर आस्था का पारावार है, लेकिन हृदय से सहज निःसृत होने वाला उल्लास नहीं दिखा। पश्चिम बंगाल, पूवीü उत्तर प्रदेश, बिहार और पूर्वोत्तर के राज्यों की तरह सार्वजनिक रूप से दुगाü पूजा उत्सव आयोजित न किए जाएं तो कोई बात नहीं, लेकिन स्थानीय लोगों को भी इन कार्यक्रमों में सहभागिता अवश्य निभानी चाहिए। इससे स्थानीय लोगों में आप्रवासी लोगों के प्रति अपनत्व का भाव बढ़ेगा तथा उन्हें बंगाली संस्कृति के बारे में बहुत कुछ जानने समझने का अवसर मिलेगा। आप्रवासी लोगों में भी अकेलेपन का बोध कम होगा। यहां यह तथ्य भी विचारणीय है कि राजस्थान या जयपुर में शारदीय नवरात्र के दौरान घरों में परंपरागत रूप से माता भगवती की सगुण रूप में ही पूजा-अर्चना की जाती है और कलशस्थापना के साथ ही पूजा-स्थल पर भगवती की तस्वीर भी रखी जाती है। इसके बावजूद सामूहिक पूजा पांडालों में आयोजित आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों से इस तरह की दूरी-बेरुखी को किसी भी तरह से अच्छा नहीं कहा जा सकता। स्थिति तो कई बार ऐसी होती है कि पूजा पांडाल से सटे इलाके में भी स्थानीय लोग इस उत्सव से बिल्कुल ही अनजान होते हैं। इस मुद्दे पर अवश्य ही पुनर्विचार किया जाना चाहिए।
दशहरा मेले की रहेगी बहार
जयपुर के साथ ही पूरे राजस्थान में विजयादशमी पर सोमवार को दशहरा मेलों की बहार रहेगी। दशहरे का उत्साह तो यहां देखते ही बनता है। चंबल के किनारे बसे कोटा का दशहरा मेला तो देश ही नहीं, विश्व में प्रसिद्ध है। शहरों में जगह-जगह खानदान सहित दशानन के पुतले जलाए जाएंगे। आयोजकों में रावण के पुतले की ऊंचाई को लेकर होड़ रहेगी। इस दौरान मंचों पर सांस्कृतिक प्रस्तुतियों से कार्यक्रम में चार चांद लगाए जाएंगे, वहीं रंग-बिरंगी आतिशबाजी से आसमान अट जाएगा। इतना ही नहीं, गली-मोहल्लों में भी बच्चे अपने स्तर से रावण के पुतले बनाकर उसका दहन करेंगे।

1 comment:

biharsamajsangathan.org said...

shree manjee Bahut he achchha lekha hai aap ne.

bahut bahut dhanybad.

Suresh Pandit