आइए, आज आपको बिहार के सुप्रसिद्ध डिश `चिवड़ा-दही´ की महत्ता सुनाता हूं। अभी कुछ दिनों पहले जनसत्ता में मृदुला सिन्हा का एक लेख पढ़ा था जिसमें उन्हें नारी के आंचल के दर्जनों गुण गिनाए थे। इसी बहाने उन्होंने बरगुन्ना (डेगची) के भी बारह गुणों से संपन्न होने की बात कही थी। संयोग से उसी रात जयपुर में मुझे एक शादी में जाने का अवसर मिला। जिन्होंने हमें निमंत्रण दिया था, वे हमारी प्रोफेशनल मजबूरी से वाकिफ थे कि हम देर रात ही शादी में शरीक हो सकेंगे। ऑफिस की ड्यूटी से फ्री होते-होते हम पांच-छह मित्र करीब 15 किलोमीटर की दूरी तय करके विवाह स्थल पर पहुंचे। पहुंचते-पहुंचते घड़ी की सूइयां साढ़े बारह से अधिक बजने का संकेत दे रही थीं। वहां बराती-घराती दोनों ही पक्ष के लोग भोजन कर चुके थे, दूल्हा-दुल्हन भी भोजन का स्वाद लेने के बाद विवाह-वेदी पर बैठने चले गए थे। पंडितजी व्यवस्थाएं जुटाने में लगे थे। कैटरिंग वाले और हलवाइयों ने भी भोजन शुरू कर दिया था। जो भोजन कर चुके थे, वे टेबल आदि समेट रहे थे। हमें पहुंचते ही कहा गया कि हम भी भोजन कर लें। मना करना शिष्टाचार के विपरीत होता, सो हमने भी `दाने-दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम´ पर अमल करते हुए भोजन के उस अंश को उदरस्थ करना शुरू कर दिया, जिन पर हमारा नाम लिखा था।
खाते-खाते मुझे बिहार में विवाह-शादी या अन्य अवसरों पर होने वाले भोज की याद आ गई। ऐसे अवसरों पर `चिवड़ा-दही´ ऐसा डिश होता है, जो मेजबान के पास मेहमान के लिए हर समय उपलब्ध होता है। चार बजे भोर में भी कोई छूटा हुआ बराती या अन्य अतिथि आ जाए तो बिना पेशानी पर बल लाए हुए उसके सामने `चिवड़ा-दही´ परोस दिया जाता है। सब्जी बची हो तो ठीक नहीं तो कोई बात नहीं। वैसे अमूमन ऐसे अवसरों पर आलू का अचार भी बनाया जाता है जो कई दिनों तक खराब नहीं होता और `चिवड़ा-दही´ के साथ इसका कंबिनेशन भी सही बैठता है। वैसे बतौर सहायक सब्जी या अचार न भी हो तो भी `चिवड़ा-दही-चीनी´ की त्रिवेणी ऐसा स्वाद जगाती है कि क्षुधा ही नहीं, मन भी तृप्त हो जाता है।
ऐसे में एक और वाकया याद आता है। भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी किशनगंज आए थे। मैं भी चला गया था भाषण सुनने। उन्होंने अपने भाषण में फास्ट फूड संस्कृति के बढ़ते प्रचलन का उल्लेख करते हुए कहा था कि `चिवड़ा-दही´ से अच्छा फास्ट फूड क्या होगा। बस चिवड़ा भिगोया, दही और चीनी से उसकी संगत कराई और हो गए तृप्त। बिहार के अधिकतर शहरों के भोजनालयों में भी नाश्ते के रूप में यह डिश आसानी से उपलब्ध हो जाता है।
ऐसा नहीं है कि राजस्थान में ऐसा कोई टिकाऊ डिश नहीं होता है। जरूर होगा, लेकिन बदलते हुए दौर में हम अपनी संस्कृति से ही नहीं, पारंपरिक खान-पान से भी दूर होते जा रहे हैं और ऐसे में जब चूल्हा बुझ चुका होता है, तंदूर ठंडा हो चुका होता है, हलवाई जा चुके होते हैं और फिर कोई मेहमान (असमय) आ धमकता है तो मेहमान व मेजबान दोनों को ही इन परिस्थितियों से रू-ब-रू होना ही पड़ता है।
अब बुज़ुर्ग लोग ज़्यादा खुश नज़र आने लगे हैं!
5 months ago
7 comments:
phir kab bula rahe ho dhai chiwada khane
chuda dahi ka swaad maine bhi khuub chakha hai kyonki nanighar mera bihar ka hai ....bihar ki sodhi gandh ko darshate huye lekh ke liye badhai.
-dr.jaya
किसान भाइयो चिवडा-दही बोया करो :)
chiwda-dahi-shakkar...............
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WAH ! MAZA AA GAYA manglamji.
बिहार में ही नहीं हर प्रदेश और संस्कृति में ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो बहुत जल्दी मेहमानों को परोसी जा सकती हैं , कारण तो बस वही है कि हम अब चीजें सहेज कर नहीं रख पा रहे हैं।
भाई साहब आपने सही कहा दही चिवड़े का जवाब नहीं। मैंने भी मकर संक्रात पर खाया मजा आ गया। मेरा दोस्त बलिया का है सो उसने मना करने पर भी खिला दिया। आप भी चूरमा, दाल, बाटा का मजा लीजिए।
भाई साहब आपने सही कहा दही चिवड़े का जवाब नहीं। मैंने भी मकर संक्रात पर खाया मजा आ गया। मेरा दोस्त बलिया का है सो उसने मना करने पर भी खिला दिया। आप भी चूरमा, दाल, बाटा का मजा लीजिए।
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