Saturday, December 6, 2008

प्रतीकों के पचड़े क्यों, गढ़ो नए प्रतिमान

उरदू जगत की स्वनामधन्य हस्ती शायर शीन काफ निजाम के जन्मदिन पर गत 26 नवंबर को आबशार संस्था की ओर से जयपुर के पिंकसिटी प्रेस क्लब में `नज्म और निजाम´ कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में अलीगढ़ के प्रो. शाफअ किदवई ने निजाम साहब की हाल ही प्रकाशित किताब `गुमशुदा दैर की गूंजती घंटियां´ की नज्म दर नज्म व्याख्या की। उनके बाद दिल्ली से आए प्रोफेसर डॉ. सादिक ने जब इस किताब और निजाम साहब और उक्त किताब पर बोलना शुरू किया तो कई बार उनमें मुझे कमलेश्वर का अक्स दिखा। जिन्होंने कमलेश्वर को सुना होगा, शायद मेरी बातों से इत्तफाक रखेंगे।
खैर, डॉ. सादिक ने बहुत सारी बातें कहीं, जो मुझ जैसे उरदू नहीं जानने वालों के लिए भी बोझिल नहीं थीं। इसी क्रम में उन्होंने सत्यजित राय की फिल्म `पाथेर पांचाली´ से जुड़ा एक रोचक वाकया सुनाया। यह फिल्म मैंने तो नहीं देखी, लेकिन जैसा कि उन्होंने कहा कि इस फिल्म के कई दृश्यों में बार-बार एक आवारा-सा कुत्ता दिखाई देता है। जैसा कि सादिक साहब ने बताया कि जब यह फिल्म रिलीज हुई तो उस समय के फिल्म समीक्षकों ने उन दृश्यों की भूरि-भूरि प्रशंसा की, जिनमें वह कुत्ता दिखता है। समीक्षकों का कहना था कि सत्यजित राय ने कुत्ते के प्रतीक के माध्यम से बहुत बड़ी बात सहज ही कह दी। यह तो हुई भेड़चाल वाली बात, लेकिन कुछ लोग इतर नजरिया भी रखते हैं। एक ऐसे ही अखबारनवीस ने हिम्मत करके खुद सत्यजित राय साहब से पूछ लिया कि कुत्ते को प्रतीक बनाने के पीछे उनकी क्या सोच थी। इस पर सत्यजित राय ने खुलासा किया कि दरअसल उनकी फिल्में आम जिंदगी के आसपास होती थीं। इसलिए वे बिना किसी भव्य सैटअप के सामान्य वातावरण में शूटिंग किया करते थे। ऐसी ही एक जगह पर पाथेर पांचाली की शूटिंग हो रही थी। शूटिंग के दौरान यूनिट के लोग बार-बार उस आवारा कुत्ते को भगा देते थे, लेकिन वह थोड़ी देर में वापस आ धमकता था। कई बार भगाने के बावजूद जब कुत्ता अपने कुत्तेपना से बाज नहीं आया तो हारकर फिल्म की शूटिंग शुरू कर दी गई और इस तरह उस फिल्म के दृश्यों में उक्त कुत्ता भी अमर हो गया।
सादिक साहब के कहने का मतलब यह था कि आजादी के पहले हमारे लेखक-कवि भी प्रतीकों में बात कहने को बाध्य थे, लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ऐसी स्थिति नहीं है। इसलिए लेखकों को प्रतीकों के पचड़े में पड़ने की बजाय नए प्रतिमान गढ़ने चाहिए तथा समाज को अपना सरवोत्तम देना चाहिए।
चलते-चलते : कुत्ते की बात चली तो बताता चलूं कि यह हमारा पीछा नहीं छोड़ने वाला। महाभारत काल में कुत्ते ने जब स्वर्ग जाने के समय युधिष्ठिर का साथ नहीं छोड़ा, तो आज यह केरल के मुख्यमंत्री अच्युतानंदन का साथ कैसे छोड़ देता। मुंबई आतंकी हमले में शहीद मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के पिता ने जब अच्युतानंदन को दुत्कारा तो वे अपनी औकात पर आ गए औऱ इतना घटिया बयान दिया कि पूरा देश उसके खिलाफ हो गया। हारकर उन्हें अपने उस बयान के लिए माफी मांगनी पड़ी। आज किसी ब्लॉगर भाई ने लिखा कि अच्युतानंदन यदि सीएम नहीं होते, तो कुत्ता भी उन्हें नहीं जानता।

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