जननी और जन्मभूमि की महिमा तो वेद-पुराण-उपनिषदों तक ने गाई है, लंका-विजय के बाद प्रभु श्रीराम ने अनुज लक्ष्मण को कहा था-
यद्यपि स्वर्णमयी लंका लक्ष्मण में न रोचते।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।।
मगर माफी चाहता हूं, आज अचानक " जननी- जन्मभूमि" यह शब्द जेहन में आ गया। मेरा स्मार्टफोन भी हम सभी की तरह ही जननी... टाइप करते ही अपनी स्मार्टनेस का परिचय देते हुए जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी...फ्लैश करने लगा। लेकिन मैं तो आज जान बूझकर " जननी-जन्मभूमि" ही लिखना चाहता था।
जी हां, ननिहाल या ममहर सही अर्थों में जननी-जन्मभूमि ही तो होती है, जहां हमारी जननी मां ने पहली बार अपनी आंखें खोली थीं। जीवन के करीब सत्तर वसंत देखने के बाद भी जहां लोग उसे उसके नाम से बुलाते हैं। ... और शादी के बाद करीब पांच दशक ससुराल में बिताने के बाद भी मायके के लोगों में उसके लिए वही पुराना स्नेह है। पीढ़ी बदल जाने से स्नेह की जगह सम्मान ने ले ली है।
... तभी तो मेन हाईवे पर उतरने के बाद मां के बाााा साथ अपने मामू के घर तक पहुंचने में बीस मिनट से भी अधिक लग गये। ... कौन कहता है कि भारत पुरुष प्रधान देश है, बिल्कुल नहीं...
शक्ति के उपासक हम सदा मातृपूजक हैं।
04 Dec 2019
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