सफर जीवन का हो या ट्रेन का, जब लय बिगड़ जाती है तो कुछ अच्छा नहीं लगता। इस बार लोअर बर्थ पर आरक्षण मिला है, मिडिल बर्थ वाले सहयात्री की बैठने की इच्छा बलवती हो गई तो मुझे नींद से बोझिल अपनी आंखों को समझाना पड़ा।
थोड़ी देर बाद दिखा कि मेरी पसंदीदा साइड लोअर बर्थ वाले सज्जन बैठे हैं तो मैं भी उनका बगलगीर बन बैठा। इसमें कई स्वार्थ एक साथ सध गये। खुली खिड़की से बाहर प्रकृति को निहारने का सुख। मोबाइल को ऑक्सीजन...इसकी सांसें भी टूटने ही वाली थी। मोबाइल फोन की कीमत जैसे जैसे बढ़ रही है, चार्जिंग वाला तार छोटा होता जा रहा है। ऐसे में लोअर बर्थ पर लगे पावर प्वाइंट से मोबाइल चार्ज करना मुश्किल हो रहा था। साइड लोअर बर्थ पर आने से यह समस्या भी हल हो गई।
ट्रेन के लेट होने की उतनी चिंता नहीं है, जितनी ट्रेन से उतरने के बाद के सफर की फ़िक्र हो रही है। मन इसी उहापोह में खोया था कि अचानक खिड़की के कांच पर चिपकी बिंदिया पर नजर चली गई। बरबस ही सोचने लगा हूं इस बिंदिया के बारे में। न जाने उस रूपसी ने कितने पत्तों में से छांटकर इसे खरीदा होगा और फिर इसे चांद सरीखे भाल पर सजने का सौभाग्य मिला हो। यह भी संभव है कि किसी ने अपने प्रेमी को लुभाने के लिए बड़ी शिद्दत से इसे खरीदा हो।ऐसा भी तो हो सकता है कि किसी आशिक ने दिल में बसी अपनी माशूका के चेहरे पर चार चांद लगाने के लिए यह बिंदिया खरीदी हो।
पुरुष के प्रेम से अलग महिलाओं का आपस में भी तो प्रेम-संबंध होता है। किसी भाभी ने अपनी ननद के लिए बिंदिया खरीदी हो या फिर ननद ने ही अपनी प्यारी भाभी के लिए इसे पसंद किया हो। यह भी संभव है कि कोई सासू मां गंगा नहाने गई हो या फिर किसी तीर्थ स्थल के प्रसाद के रूप में सौभाग्य के प्रतीक इस बिंदिया को अपनी बहू के लिए खरीदा हो।
बिंदिया पुराण में खोया हुआ मैं यह सोचने को विवश हूं कि दुकान के काउंटर पर लगे कांच से निकलने और किसी सुंदरी के माथे पर सजने के बाद ऐसा क्या हुआ होगा कि यह बिंदिया फिर कांच पर चिपकने के हतभाग्य को प्राप्त हो गई। इसकी वजह खोज पाने में नाकाम रहने के बाद आप मित्रों पर ही यह दायित्व छोड़ रहा हूं।
02 Dec 2019
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