आज सुबह से ही मन खिन्न है, उदास है। पत्नी और बेटा बार-बार कारण पूछते रहे, लेकिन क्या बताता उनसे, ऐसा लगता है जैसे शब्द बेमानी हो गए हों। आजीविका के कारण मां-बाबूजी, घर-गांव-समाज, मित्र मंडली बहुत कुछ पीछे छूट गया, लेकिन किसी न किसी रूप में उनसे जुड़े रहने की कोशिश नहीं छोड़ी। पहले पत्र लिखता था, लेकिन जब प्रत्युत्तर आने बंद हो गए, तो धीरे-धीरे मेरा पत्रलेखन भी दम तोड़ चला। अब मोबाइल का युग है और उसी के सहारे संबंधों का सेतु बनाने का भरसक प्रयत्न करता हूं।
सुबह घर फोन किया तो मां के स्वर में उदासी थी। कई तरह की शंकाएं मन में तैरने लगीं। मैं चिंतित न होऊं, इसलिए मां कई बार मुझसे अपनी परेशानियों को साझा नहीं करतीं। बार-बार पूछने पर उन्होंने बताया कि पड़ोस का एक युवक सड़क हादसे में असमय काल के गाल में समा गया। वह बस कंडक्टर था और छुट्टी के दौरान गांव में ही कहीं जा रहा था कि किसी अज्ञात वाहन ने उसे टक्कर मार दी थी। उसका चेहरा सामने घूमने लगा। संयोगवश पिछली बार गांव की यात्रा के दौरान उसी की बस से गांव से पटना आया था। उसने बस लेकर अजमेर शरीफ आने पर जयपुर में मुझसे मिलने की बात कही थी, लेकिन उसकी यह इच्छा अधूरी ही रह गई।
मां ने एक और हादसे की सूचना दी। अपनी बेरोजगारी के दिनों में गांव के एक सज्जन बचपन में मुझे ट्यूशन पढ़ाया करते थे। अब शिक्षक की नौकरी से सेवानिवृत्त होकर गांव में ही रह रहे हैं। उनका पुत्र जो शायद गांव के ही स्कूल में शिक्षा मित्र या शिक्षक के पद पर कार्यरत था, वह भी अज्ञात वाहन की चपेट में आ गया। दोनों ही हादसे में मृतक मोटरसाइकिल से ही कहीं जा रहे थे। मोटरसाइकिल की स्पीड कितनी थी या किसकी गलती से हादसा हुआ, यह बताने वाला कोई नहीं है, क्योंकि दोनों ही हादसे ऐसी जगहों पर हुए, जहां सड़क किनारे बाग-बगीचे, खेत आदि ही हैं। ऐसे में कौन किसे दोषी ठहराए, लेकिन इन युवकों के मां-बाप, पत्नी, मासूम बच्चों व अन्य परिजनों को ढाढस बंधाने के लिए किसी के पास शब्द नहीं हैं।
बदलते हुए जमाने के साथ समय की कमी और अधिक गति की चाहत के कारण मोटरसाइकिल की ख्वाहिश अब विलासिता की बजाय जरूरत बनती जा रही है। इसके बावजूद गांव-देहात में हैलमेट नहीं पहनने का चलन भी जीवन पर भारी पड़ रहा है। शहरों की तरह सरकार को गांवों में भी दुपहिया वाहन चालकों के लिए हैलमेट पहनने की अनिवार्यता पर सख्ती करनी चाहिए अन्यथा यूं ही हादसे इन 'अभिमन्युओंÓ का बलिदान लेते रहेंगे। हालांकि मौत सबसे बड़ा सच है और इसे झुठलाया नहीं जा सकता, लेकिन जब यह इस तरह आती है तो समझना-समझाना मुश्किल हो ही जाता है।
अजीबोगरीब बूढ़ा
1 week ago
1 comment:
शहरों में भी हेलमेट का चलन 'जीवन' सुरक्षा की दृष्टि से नहीं , 'जेब' सुरक्षा की मजबूरी की वजह से ही है .....
....गांवों में तो ट्रेफिक पुलिस का चक्रव्यूह होता नहीं ,.......अभिमन्यु निश्चिन्त हो जाता है !!!.
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