Wednesday, March 31, 2010

भगवान से बड़ा हो गया भक्त का कद


चैत्र पूर्णिमा पर मंगलवार को हनुमानजी की जयंती मनाई गई। जहां-जहां बजरंगबली के भक्त हैं, वहां-वहां उन्होंने अपने आराध्य के जन्मदिन पर अपने-अपने तरीके से उल्लास मनाया। छोटी काशी जयपुर के मंदिरों में तो एक दिन पहले यानी सोमवार अद्र्धरात्रि से ही हनुमानजी का अभिषेक शुरू हो गया था। मंगलवार को भी दिनभर मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी। पदयात्राएं-शोभायात्राएं निकलीं, झांकियां सजाई गईं। खैर, यहां मेरा मकसद आपलोगों को हनुमान जयंती पर हुए आयोजनों की जानकारी देना नहीं है। न ही मैं हनुमानजी की कृपा के चमत्कारों से आपको अवगत कराना चाहता हूं क्योंकि पवनपुत्र के पवन की गति से भी तेज चमत्कारों के बारे में मैं अपनी अल्पज्ञता जगजाहिर नहीं करना चाहता। यहां मैं किसी और उद्देश्य से आपसे मुखातिब हूं।
ज़हां तक मैं समझता हूं, हिंदू परिवारों में कोई भी परिवार ऐसा नहीं होगा, जहां हनुमानजी की पूजा नहीं होती हो। कोई भी साक्षर शायद ऐसा नहीं होगा, जिसकी दिनचर्या हनुमान चालीसा से शुरू न होती हो। साक्षर ही क्यों, मैंने तो कई ऐसे लोगों को भी देखा है जिन्हें बिल्कुल ही अक्षरज्ञान नहीं था और उन्हें हनुमान चालीसा ही नहीं, बल्कि सुंदरकांड की चौपाइयां और दोहे तक याद हैं। मेरे गांव में आज भी हर शनिवार और मंगलवार को सुंदरकांड के सामूहिक पाठ किए जाते हैं और इसके साथ सहज रूप से ही हनुमान चालीसा का भी पाठ होता है। बस, बाकी लोगों के साथ सुनकर और उनके ताल से ताल मिलाते हुए उन निरक्षर लोगों ने भी सहज रूप से हनुमान चालीसा और सुंदरकांड को कंठस्थ कर लिया।
गांवों-कस्बों में सहज रूप से ही हनुमानजी के मंदिर दिख जाते हैं और इसका सबसे बड़ा कारण यही है कि हनुमानजी ने जिस समर्पण भाव से अपने स्वामी मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की भक्ति की, वह बेमिसाल हो गई। लंका में जब हनुमानजी सीता माता का दुख साझा करने की अशोक वाटिका पहुंचे तो उन्होंने रामदूत को अष्ट सिद्धियों और नव निधियों का वरदान दे दिया, जिन्हें हनुमानजी मुक्तहस्त से अपने भक्तों को लुटाने में कोई संकोच नहीं करते।
ऐसे में तो यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि भगवान बनना भले ही मुश्किल हो, लेकिन भक्त बनकर भी अपना कद ऊंचा बनाने की कला हनुमानजी से अवश्य ही सीखी जा सकती है।

2 comments:

Udan Tashtari said...

हनुमान जयंति की बधाई तो ले ही लिजिये.

biharsamajsangathan.org said...

Dear manglamji

Very Good.

Thanks
Suresh Pandit
E/L 17, Vidhyadhar Nagar,Jaipur 302 023, Rajasthan
Emails: biharsamajsangathan@gmail.com
www.biharsamajsangathan.org