इस पखवाड़े को यदि बजट पखवाड़ा कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी से लेकर विभिन्न राज्यों के वित्त मंत्री और मुख्यमंत्री (जो वित्त मंत्रालय भी देखते हैं) अपने-अपने राज्यों के बजट पेश करने में जुटे हैं। अब इन बजट से जनता का कितना भला हो पाता है, यह तो उसकी किस्मत ही है।
शुरुआत यदि केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की ओर से प्रस्तुत आम बजट से करें तो उन्होंने उसमें कोई ऐसा प्रावधान नहीं किया जिससे महंगाई से पीडि़त लोगों को राहत मिल पाती। हां, डीजल तथा पेट्रोल पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क में एक-एक रुपए प्रति लीटर की वृद्धि करने की भी घोषणा की, जिससे इनके मूल्यों में ढाई रुपए प्रति लीटर से अधिक की वृद्धि हो गई। अब इसके दूरगामी परिणाम एक के बाद एक सामने आने लगे हैं। ट्रक ऑपरेटर भाड़ा बढ़ाने के लिए राष्ट्रव्यापी आंदोलन की चेतावनी दे रहे हैं। ऑटो रिक्शा से लेकर स्कूल वैन और सवारी बसें चलाने वाली सरकारी निगम व निजी बस मालिक तक किराया बढ़ाने की बात कर रहे हैं। आम आदमी की जिजीविषा है कि इसके बावजूद वह जिंदा रहेगा। गृहिणियां रोज-रोज महंगी हो रही दाल में पानी मिलाते-मिलाते परेशान हैं। आखिर कितना पानी मिलाएं। पिछले दिनों अखबारों में खबर छपी थी कि प्रणव मुखर्जी की बिटिया ने वित्त मंत्री पापा को खुला पत्र लिखा था कि सड़कों पर लड़कियों को छेडऩे वालों पर टैक्स लगा दिया जाए। इसका तो मुखर्जी को ध्यान नहीं रहा, लेकिन घर में डाइनिंग टेबल पर हींग के बेस्वाद होने की बात उन्हें याद रही। शायद हींग की क्वालिटी अच्छी नहीं रही हो, सो उन्होंने बजट के दौरान दरियादिली दिखाते हुए हींग की कीमत में कभी की घोषणा कर दी। अब उन्हें कौन बताए कि दाल बनेगी तब तो हींग का छौंक लगेगा। जब लोगों की जेब में दाल खरीदने लायक ही पैसे नहीं होंगे तो सस्ती हींग किस काम की।
अन्य राज्यों के बजट में क्या कुछ हुआ, यह तो गहन अध्ययन का श्रमसाध्य विषय है, लेकिन राजस्थान के गांधीवादी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने हद के बाहर जाकर खाद्यान्न, दलहन, तिलहन सहित कई अन्य वस्तुओं पर वैट दर 4 से बढ़ाकर 5 प्रतिशत कर दी और गलती का पता चलने पर अगले ही दिन उन्हें यह घोषणा वापस लेने को बाध्य होना पड़ा। दरअसल सेल्स टैक्स एक्ट के तहत राज्य सरकार को इन वस्तुओं पर वैट बढ़ाने का हक ही नहीं था। गहलोत ने बजट भाषण के दौरान रुद्राक्ष को करमुक्त करने की घोषणा की। अब उन्हें कौन बताए कि भूखे भजन न होहिं गोपाला। जब पेट भरा होता है तभी भक्ति में भी मन रमता है। भूखे पेट भी उसी स्थिति में भजन हो पाता है जब भजन के बाद पर्याप्त फलाहार की संभावना हो।
हमारे आसमानी राजनेताओं की सोच देखकर तो यही लगता है जैसे वे कह रहे हों-हींग की दाल खाओ रुद्राक्ष की चटनी के साथ, भली करेंगे राम।
कितने कमरे!
6 months ago
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