Wednesday, November 11, 2009

बच्चों के मरने का है इंतजार


गत वर्ष दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव के बाद अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी तो प्रदेशवासियों में स्वच्छ प्रशासन की उम्मीद जगी थी। गहलोत चूंकि गांधीवादी माने जाते हैं और उनके सादगी भरे आचार-व्यवहार से उनके ईमानदार होने में कोई संशय नहीं होता। इसके बावजूद पिछले कुछ दिनों से कुछ घटनाएं ऐसी हो रही हैं, जिनसे बार-बार ऐसा आभास होता है कि राजस्थान में सरकार है ही नहीं। जब तक कोई राजनीतिक दल और उसके नुमाइंदे विपक्ष में होते हैं, तब तक तो -हमें ऐसा करना चाहिए-ऐसा होना चाहिए- यह वक्त की जरूरत है- सरीखे जुमले जनता को भी अच्छे लगते हैं, लेकिन सत्तासीन होने के बाद ये जुमले जनता को डंक मारने लगते हैं, चुभने लगते हैं।
पिछले 29 अक्टूबर को जयपुर शहर से महज 16-17 किलोमीटर दूर बने इंडियन ऑयल डिपो के टैंकरों में आग लग गई थी। आग ने प्रलंयकारी रूप धारण कर लिया और सरकार ने हाथ खड़े कर दिए कि इसमें हम कुछ नहीं कर सकते। यह तो ईश्वर की कृपा थी कि हवा ने आग का साथ नहीं दिया, अन्यथा मरने वालों की संख्या दर्जन में नहीं, सैकड़ों में होती और घायलों की संख्या हजारों में। भवनों व संपत्ति का नुकसान भी अरबों-खरबों तक पहुंच जाता। इस अग्निकांड के बाद प्रशासन ने जिस रूप में आपदा प्रबंधन का धर्म निभाया, वह निहायत ही दिशाहीन और अप्रभावी रहा।
आग की लपटें थमने के बाद कारबन भरे जहरीले धुएं के बादल छंटे भी नहीं थे कि तीन नवंबर को शहर के नामी अंग्रेजी मीडियम एसएमएस स्कूल की प्राइमरी कक्षा की एक बच्ची को स्वाइन फ्लू होने की जानकारी उसके पिता ने स्कूल प्रशासन को दी। इसके बाद स्कूल ने स्वविवेक से एहतियात बरतते हुए एक सप्ताह की छुट्टी की घोषणा कर दी। उसके बाद से स्वाइन फ्लू से संक्रमित होने वाले बच्चों का आंकड़ा दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। बुधवार को प्रदेश में स्वाइन फ्लू के 83 नए मरीज मिले, जिनमें 71 अकेले राजधानी जयपुर में थे। इनमें भी स्वाइन फ्लू से प्रभावित बच्चों की संख्या 41 थी। चिकित्सा मंत्री और जिला प्रशासन अभी भी निजी स्कूलों को स्वविवेक से ही स्कूल बंद करने की हिदायत दे रहे हैं। और इन निजी स्कूलों का आलम यह है कि जिन स्कूलों में किसी बच्चे की स्वाइन फ्लू की रिपोर्ट पॉजीटिव मिलती है, तो उसमें अवकाश की घोषणा कर दी जाती है। ऐसे में कई अभिभावकों में दहशत का माहौल है और कई अभिभावक प्री-कॉशन लेते हुए भय के मारे अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज रहे। सरकारी स्कूलों के बच्चों को तो भगवान भरोसे ही छोड़ दिया गया है। उनके बच्चों के लिए या उन स्कूलों में छुट्टी घोषित करने के कोई इंस्ट्रक्शन नहीं दिए जा रहे।
स्वाइन फ्लू का प्रकोप जिस तरह से बढ़ रहा है, इसमें संदेह नहीं कि आने वाले दिनों में यह महामारी का रूप धारण कर ले। बीमारी कैसी भी हो, उपचार से बचाव का महत्व अधिक होता है और इस तथ्य को कोई नकार नहीं सकता। अगस्त में पुणे में जब स्वाइन फ्लू फैला था, तब वहां के प्रशासन ने बिना देर किए स्कूल-कॉलेजों में छुट्टी की घोषणा कर दी थी। एहतियात के तौर पर मॉल और मल्टीप्लेक्स भी बंद कर दिए गए थे। स्थिति सामान्य होने पर स्कूल-कॉलेज, मॉल-मल्टीप्लेक्स सभी खुल गए और आज वहीं सब कुछ पटरी पर है।
क्या राजस्थान सरकार इस तरह के निर्णय नहीं ले सकती? मुख्यमंत्री गहलोत बहुत ही ईमानदार हैं, लेकिन उनके ईमानदार होने भर से प्रदेश की जनता का भला नहीं होने वाला। जनता की रक्षा और भले के लिए सरकार को जरूरी और त्वरित निरणय भी लेने होंगे, तभी उसकी उपादेयता सिद्ध हो पाएगी।
मुझे तो लगता है कि राजस्थान में सरकार नाम की कोई चीज है ही नहीं या है भी तो वह कहीं लापता हो गई है, जिसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवानी पड़ेगी। या फिर इस सरकार को बड़ी संख्या में बच्चों के मरने का इंतजार है...उसके बाद ही यह चेतेगी। ईश्वर सरकार को सद्बुद्धि दे जिससे प्रदेशवासियों को इस संक्रामक बीमारी से शीघ्रातिशीघ्र मुक्ति मिल सके।

5 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

मुझे तो लगता है कि राजस्थान में सरकार नाम की कोई चीज है ही नहीं या है भी तो वह कहीं लापता हो गई है, जिसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवानी पड़ेगी। या फिर इस सरकार को बड़ी संख्या में बच्चों के मरने का इंतजार है...उसके बाद ही यह चेतेगी। ईश्वर सरकार को सद्बुद्धि दे जिससे प्रदेशवासियों को इस संक्रामक बीमारी से शीघ्रातिशीघ्र मुक्ति मिल सके।

पूरे ही देश का यह हाल है जनाव !

suresh said...
This comment has been removed by the author.
suresh said...

sarkar ko jagna bahut jaruri hai nahi to aandolan jari ho jaiga ya fir wastav me iske gumshudgi ki report Pradhan mantri ji ko bhejni hai.

Unknown said...

netao ko apni burai nahi dikhti Acha neta vahi ha chuvnav ane par bade vade kare jeet jane par unke pure nahi karne ka karn de sake. lakin iss media ka kya kare jo bik jata ha aj media ko sarkar ki kami nahi dikhti kyo. media aj benakab ho chuka ha. juthi khabre chap raha ha . use kahi correpction sarkar ka najar nahi ata. media ma correptin bhara ha. gahlot g or media k liye-" bura jo dekhan m chala bura na ...jo dil khoja apna mujse bura na koy". lakin kisi me dil to ho. sabki atma mar chuki ha. chunav m pese laker juth parosa jata h.media ko b galat fahmi ha ki uski khbro par log bharosa karte ha,kyo surve galat nikal jate ha chunavo ma. hariyana m congress ko clean sweep batane valon ko sharam nahi ati, vha congress ko bahumat nahi mila. jod tod s sarkar banai. gahlot ki gandhi se tulna kar gandhi ko gali na do. gandhi ne rajniti nahi ki. gandhi koi updes dene se pahle khud jevan ma utarte isliye hi unki bat ka asar hota tha.gahlot ko to vasundhara ma burai dikhati ha unke prades m karaye vikas k kam nahi dikhte. unhe apni or sarkar ki kami dekni chahiye taki rajy ka vikas ho. pratyek admi k sarir m gandgi bhari hoti h lakin vah usko nahi dekhta. manmohan and gahlot ko mahnghai nahi dikhti janta pisti ha to pise unki sarkar jodtod s salamt rahe ye hi unka prayas ha. media b ap anko par patti bandhe ha janta k samasya se. log mare to marte rahe kisi ko chinta nahi. gahlot g kuch kar ke dikhao billi k bhayga s apko chika tutkar mil gaya ha.

varsha said...

sarkar ho ya oil depot prabandhan sabne ise prakratik aapda hi mana...swine flu me bhi halat isse itar nahin dikhayee padte.