Saturday, November 14, 2009

...और कैसा होता है प्रलय

शुक्रवार को फिल्में रिलीज होती हैं और फिल्मों के जानकार इसकी चीर-फाड़ करते हैं। आजकल जैसी फिल्में बन रही हैं, उनकी तारीफ तो विरले ही पढ़ने को मिलती है। शनिवार को भी बॉलीवुड की फिल्म -तुम मिले- और हॉलीवुड की फिल्म 2012 की समीक्षा पढ़ी। वैसे भी आजकल इन समीक्षाओं को पढ़कर और फिर किराये की सीडी लाकर ही फिल्में देखकर ही काम चलाना पड़ता है।
न तो फिल्मों के बारे में ज्यादा समझता हूं और न ही इसके बारे में जानना चाहता हूं। मैं किसी इतर कारण से आप लोगों से मुखातिब हूं। आजकल कई बार लोगों की जुबान से प्रलय की आशंका से जुड़े सवालों से दो-चार होना पड़ता है। जहां तक मैं समझता हूं, आज जिस वातावरण में हम जी रहे हैं, वह किसी प्रलय से कम नहीं है।
आप सोचिए, जब 20 रुपए किलो आटा, 20 रुपए किलो आलू और 90 से 100 रुपए किलो में दाल खरीदना पड़ रहा हो, ढाबे पर एक अति पतली रोटी के चार रुपए चुकाने पड़ रहे हों, निकम्मी सरकारों के कारण स्वाइन फ्लू के साये में जीने को आप विवश हों, सरकारी अस्पताल लोगों के उपचार का नहीं, बल्कि डॉक्टरों, कंपाउंडरों और अन्य कर्मचारियों की कमाई का सबब बने हों, मिलावटी मावा और सिंथेटिक दूध की खबरें अखबारों की मेन लीड बनती हो, ऐसे में आम आदमी के लिए एक-एक दिन गुजारना किसी प्रलय का सामना करने से कम नहीं होता। आमजन के भाग्य विधाताओं का इन समस्याओं से कोई वास्ता नहीं पड़ता, इसलिए वे इसकी फिक्र नहीं करते।
इसके बावजूद आगामी सालों में प्रलय की भविष्यवाणी करने वाले तथाकथित ज्योतिषियों से मेरा निवेदन है कि आम जनता के लिए खुद ही बहुत सारी परेशानियां मुंह बाए खड़ी रहती हैं, सो वे अपनी ऐसी भविष्यवाणियों से बाज आ जाएं ताकि लोग चैन से रह सकें।

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