Tuesday, January 22, 2008

पौषबड़ों की निराली है महिमा


गुलाबीनगर जयपुर की कई सारी खासियतें हैं। यहां के लोगों की धमॅ-कमॅ, देवी-देवता के प्रति कितनी अगाध आस्था है, इसका प्रमाण आपको इस हाड़ कंपाती सरदी में भी मिल सकता है। तड़के 3-4 बजे नहा-धोकर शहर के आराध्य गोविंददेवजी के दशॅनों के लिए भजन गाती हुई श्रद्धालुओं की टोलियां घरों से प्रस्थान कर जाती हैं। दिन में भी विभिन्न झांकियों के दौरान मंदिरों में उमड़ने वाली भीड़ का तो कहना ही क्या।
परकोटे के अंदर बसे पुराने जयपुर शहर में कदम-कदम पर बने मंदिर इसे छोटी काशी का उपनाम प्रदान करते हैं। अब देवता हैं तो उन्हें भोग भी लगाया जाएगा और भोग लगेगा तो भगवान की पसंद के साथ भक्तों के स्वाद का भी ध्यान रखना ही पड़ेगा। सो पूस के महीने (जिसे पौष भी कहा जाता है) में मंदिरों में पौषबड़ा महोत्सव आयोजित किए जाते हैं, जिनमें भगवान को गरमा-गरम दाल के पकौड़ों (जिन्हें पौषबड़ा कहते हैं) के साथ गाजर व सूजी के हलवे का भोग लगाया जाता है। इसके बाद पंगत में बिठाकर भक्तों को भी प्रसाद वितरित की जाती है। पूछिए मत, मिचॅ से मस्त इन पकौड़ों को खाते ही सरदी के इस मौसम में कितना आनंद आता है। पूस माह के दौरान अंग्रेजी नया साल भी आ जाता है, सो कई संस्थाएं नववषॅ स्नेह मिलन के बहाने पौषबड़ा उत्सव का आयोजन भी करती हैं।
हमारे कई साथियों ने जो स्थानांतरित होकर दूसरे शहरों में चले गए हैं और यहां लिया गया पौषबड़ों का स्वाद उनकी जीभ से उतरा नहीं है। इस मौसम में जब भी उनसे बात होती है, वे पौषबड़े की चरचा करना नहीं भूलते। पौष माह तो मंगलवार को खत्म हो गया, लेकिन माघ में मंदिरों में यह सिलसिला जारी रहेगा। इस सीजन में मौका मिले तो सही, नहीं तो अगले सीजन में पूस-माघ के दौरान जयपुर तशरीफ लाएं तो पौषबड़ों का लुत्फ जरूर उठाएं। आप खुद ही कह उठेंगे, यह स्वाद वाकई बेजोड़ है जो और कहीं नहीं मिलेगा। (हां, राजधानी जयपुर की देखादेखी राजस्थान के अन्य शहरों में भी ऐसे आयोजन होते हैं)

4 comments:

Ashish Maharishi said...

जयपुर का अलग ही जलवा है

anuradha srivastav said...

पौषबडे वाह...... क्या बात है। बचपन में सरकासूली क्षेत्र में हवा में उछाल कर चील और कौवों को भी बडे खिलाते हुये देखा है। उसका अपना रोमांच था। वक्त के साथ सब बदल रहा है।हमारे बच्चों को तो प्रसाद की तरह से भी पौषबडों को लेने और खाने में शर्म आयेगी।

sandeep sharma said...

manglam ji,
kaam ke thoda dhyan lagao, to achchha rahega. ese hi bakwas ki khabre type karte rahoge to koi "D.N." nahi padhega.

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

मुझे भी जयपुर आने के बाद ही पौषबड़ों के बारे में जानकारी प्राप्त हुई। वैसे जयपुर के अलावा कहीं और मैंने यह आयोजन कम ही देखा है।