Sunday, December 23, 2007

मुदित हुए मोदी कि विकास बोलता है


-....आखिरकार २३ दिसम्बर आ ही गया और बड़ा दिन (क्रिसमस) से दो दिन पहले ही भाजपा नेता नरेंद्र मोदी को उनके लाखों समथॅकों के साथ बहुत बड़ी खुशी मिल गई। मैंने सुबह ८ बजे बीबीसी हिंदी सुनना शुरू किया तो कुछ भी स्पष्ट नहीं था, सभा खत्म होते-होते कुछ रुझान आए। इसके बाद जब डीडी न्यूज खोला तो पांच विधानसभा क्षेत्रों में से चार पर बीजेपी आगे चल रही थी। अपन को तभी लग गया था कि कांग्रेस के पासे इस चुनाव में भी गलत ही पड़े। जयपुर में तो दिनभर सूरज नहीं निकला, लेकिन दिन चढ़ने के साथ ही कमल की पंखुड़ियां खिलने लगी थीं। चैनलों पर दिख रहे कांग्रेसियों के चेहरों से तेज गायब होता जा रहा था।
वतॅमान दौर में जैसी राजनीति की जा रही है, वैसे में अपन तो किसी भी राजनीतिक दल से इत्तिफाक नहीं रखते, लेकिन समाज में जो हो रहा है, उससे आंख चुराना भी तो संभव नहीं है। विश्लेषक नरेंद्र मोदी की इस जीत के मायने निकालने में जुट गए हैं। चुनाव अभियान की शुरुआत मोदी ने पांच साल में कराए गए विकास के बूते ही की थी, लेकिन सोनिया गांधी ने उन्हें मौत का सौदागर क्या कहा, भाजपा समथॅकों का ध्रुवीकरण शुरू हो गया था। फिर तो मोदी के सारे घर के विरोधी भी एक-एक कर धराशायी होने लगे। धुर विरोधी कांग्रेस का जो हश्र हुआ, वह तो सबके सामने है।
जहां तक मैं समझता हूं, कांग्रेस जैसे राजनीतिक दल की मुखिया जब तक लिखे हुए भाषण पढ़ती रहेंगी, दल की ऐसी ही दुगॅति बनती रहेगी। केन्द्र में जोड़-तोड़ और भाजपा विरोधी कुनबे में एका कर सत्ता हथिया लेना और बात है, लेकिन देश व दल को सफल नेतृत्व पाना दीगर बात। युवराज राहुल भी बयानबाजी में मां से पीछे नहीं हैं, इसका खमियाजा उत्तर प्रदेश में भुगतना भी पड़ा है। यह तो तय है कि विकास जरूर बोलता है और गुजरात में बाकी जो भी रहा हो, विकास की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। नरेंद्र मोदी को बहुत बहुत बधाई और कांग्रेसियों से गुजारिश कि देश को दिशा देने की तमन्ना रखने वाले को खुद ही दिशाहीन नहीं होना चाहिए।

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