Saturday, January 9, 2021

वेदना-संवेदना

कोरोना वायरस की वैश्विक महामारी ने वर्ष 2020 में हम सभी को घरों में कैद रहने के लिए विवश कर दिया था। अब नया साल 2021 दस्तक दे चुका है और हम सभी उन पुरानी कड़वी यादों को भुलाकर एक नई आशा-उम्मीद से भर गए हैं। आखिर कब तक सीमाओं में बंधा रहा है मानव।  

    आज दोपहर में एक मित्र से मिलने गया। वे मोबाइल पर किसी से बात कर रहे थे। आजकल यह सब बहुत आम है। मैं उनके फ्री होने का इंतजार करने लगा। चूंकि वे ईयर फोन लगाकर बात कर रहे थे, ऐसे में इकतरफा संवाद सुनने से पूरा माजरा मेरी समझ में आना मुश्किल था। मगर मित्र के चेहरे पर आते-जाते भाव यह इशारा जरूर कर रहे थे कि मेरी उपस्थिति को इग्नॉर करते हुए लंबी बातचीत करना उन्हें अच्छा नहीं लग रहा था। हालांकि संवाद का सिरा जहां तक मैं पकड़ पाया, उससे स्पष्ट था कि मेरे मित्र बेहद संवेदनशील मुद्दे पर चर्चा कर रहे थे और उसे बीच में छोड़ना संभव नहीं था। 

खैर...थोड़ी देर के बाद बातचीत का सिलसिला बंद करते हुए उन्होंने बताया कि गांव में पड़ोस के एक बुजुर्ग सज्जन का कल अचानक निधन हो गया। वे बड़े ही सरल और सौम्य स्वभाव के धनी थे। कभी किसी ने ऊंची आवाज में बातें करते उन्हें नहीं सुना। बच्चों के प्रति उनके सहज स्नेह भाव का तो कहना ही क्या। उनका दरवाजा बहुत बड़ा था। टोले भर के बच्चे अक्सर वहां खेलने आते थे। गांव में जरूरी नहीं कि संपन्न लोगों के घरों में भी हमेशा मिठाइयां रहती हों, मगर प्रकृति अपना खजाना खुले हाथों से गांवों में लुटाती है सो मौसम के हिसाब से आम, अमरूद, कटहल जैसे फल तो घर में रहते ही थे। ऐसे में वे दरवाजे पर खेलने आए बच्चों को बिना कोई फल खिलाए नहीं लौटने नहीं देते थे। 

यह सब सुनाते-सुनाते मेरे मित्र की आवाज भर्रा गई और वे अपने आंसुओं पर काबू नहीं रख सके। " जातस्य मृत्योर्ध्रुवम"  का हवाला देकर मैंने उन्हें चुप कराया, लेकिन उनकी यह संवेदनशीलता मुझे अंदर तक झकझोर गई।  पहले कॉलेज-यूनिवर्सिटी की पढ़ाई और फिर दाल-रोटी के चक्कर में चक्करघिन्नी बने बिहार के लाखों युवाओं की तरह मेरे ये मित्र भी बीस-पचीस साल से माता-पिता, गांव-घर सबसे दूर विभिन्न महानगरों में रहने को विवश हैं। इसके बावजूद गांव में पड़ोस के किसी आत्मीय बुजुर्ग के आकस्मिक निधन की वेदना को आंखों के रास्ते आंसुओं में विसर्जित करना आसान नहीं है। संवेदनाओं की धरातल से गहराइयों से जुड़ा व्यक्ति ही ऐसा कर सकता है। 

इसी के साथ मुझे एक पुराना वाकया याद आ गया। तब मोबाइल नया-नया आया था और स्मार्ट होने की ओर कदम बढ़ा रहा था। लोग अपने मोबाइल में तरह-तरह के रिंग टोन सेट करके खुद को भीड़ से अलग दिखाने की कोशिश करते थे। एक परिचित के पिताजी का निधन हो गया था। दो-तीन दिन बाद पता चलने पर औपचारिकतावश फोन किया तो उनके मोबाइल पर रिंग टोन के रूप में उस समय का एक फूहड़ गीत सुनाई दिया। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। अस्तु, उनके फोन उठाने पर जब मैंने उनके पिता के निधन पर संवेदना जताई तो वे गीता का पूरा उपदेश झाड़ने लगे कि क्षणभंगुर शरीर का त्याग तो करना ही था। सुनकर ऐसा लगा जैसे वे पिता के देहत्याग का इंतजार ही कर रहे थे।

5 जनवरी 2021 
जयपुर

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