Saturday, January 9, 2021

इस कदर चोट खाए हुए हैं...


मानव को अस्तित्व में आए सदियां बीत गईं, मगर अफसोस... आज तक हम आधी आबादी को सही और सुरक्षित वातावरण मुहैया नहीं करा पाए हैं। कदम-दर-कदम कवायद जारी है। इसी कड़ी में महिलाओं को सुरक्षित सफर की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए यूपी रोडवेज ने पिंक सेवा शुरू की। पहले ये बसें केवल महिलाओं के लिए ही थीं, लेकिन खर्च निकलने लायक भी सवारियां न मिलने के कारण काफी दिनों तक घाटा उठाने के बाद पुरुषों को भी इसमें सफर की अनुमति दे दी गई। एक बार मुझे भी इस बस में नवाबों की नगरी लखनऊ से प्रेम की नगरी आगरा तक की यात्रा का सुअवसर मिला। उम्र के करीब चार दशकों की सीढियां चढ़ चुका ड्राइवर इस नौकरी को अपनी नियति मान चुका था। उसकी पहनी खाकी वर्दी इसकी मुनादी कर रही थी। मगर 22-25 साल का सुदर्शन गोरा गबरू जवान कंडक्टर भरसक इसे झुठलाने की कोशिश करता दिख रहा था।  वह अपने अरमानों की उड़ान को बखूबी जारी रखे था। 
यूपी रोडवेज की बसों में ड्राइवर के पीछे वाली दो सीटें माननीय सांसदों-विधायकों के लिए आरक्षित होती हैं। बात दीगर है कि चार्टर्ड प्लेन में चलने की हैसियत रखने वाले आज के सांसदों-विधायकों के साथ वाले भी 20-25 लाख की लग्जरी कारों में चलते हैं। ऐसे में यह सीट पूरी तरह से कंडक्टर-ड्राइवर के विवेकाधीन होती है और वे अपने उच्चाधिकारियों या फिर अपनी मर्जी से यह सीट अपने चाहने वालों को ऐन मौके पर आवंटित-समर्पित कर देते हैं। सांसद-विधायक के लिए आवंटित सीट के समानांतर और गेट के जस्ट पीछे वाली सीट कंडक्टर के लिए होती है, ताकि वह गाहे-बगाहे जरूरत पड़ने पर बाईं ओर देखकर ड्राइवर को बता सके।

मगर जैसा कि मैंने कहा, आज की बेरोजगारी के माहौल से भयभीत यह नौजवान शायद परिवार वालों के दबाव में आकर कंडक्टर की नौकरी कर तो रहा था, मगर वह इसे अपनी नियति मानने को कतई तैयार नहीं था। यही वजह थी कि कंडक्टर के लिए निर्धारित यूनिफॉर्म के बजाय वह जींस-टीशर्ट में था। बस का राजा तो कंडक्टर ही होता है, सो सांसद-विधायक वाली एक सीट उसने एक खूबसूरत युवती को दे दी थी, जिसकी बातों से उसकी नफासत और लियाकत बरबस ही महसूस की जा सकती थी...और मैं यह सब काफी नजदीक से इसलिए महसूस कर पा रहा था क्योंकि मैं उसके बिल्कुल पीछे वाली सीट पर बैठा था।

ऐसा बिंदास कंडक्टर जो खुद को कुछ अलग दिखाने की मानसिकता से लबरेज हो, वह भला कंडक्टर के लिए निर्धारित सीट पर कैसे बैठता, सो अपनी सीट की बुकिंग उसने एक अन्य यात्री को कर दी, जिनकी उम्र करीब साठेक साल रही होगी। ….और बस की सवारियों से किराये की वसूली और टिकट चेक करने की कुछ मिनटों की जिम्मेदारी निभाने के बाद युवा कंडक्टर उस युवती के बगल में जाकर बैठ गया। फिर दोनों में बातचीत का जो सिलसिला शुरू हुआ, उसमें युवती तो खैर कम ही बोल रही थी, लेकिन कंडक्टर अपने बुद्धि-बल-पराक्रम की दास्तानें सुनाते थक नहीं रहा था। मगर अफसोस, प्रेम की यादगार इमारत ताजमहल के सफर पर निकली यह बस अब अपनी मंजिल पर पहुंचने ही वाली थी। हमारे यहां बसें सीधे बस स्टॉप पर ही नहीं रुकतीं, उससे पहले भी कई स्थानों पर यात्रियों को उतारकर मानव सेवा का धर्म निभाती हैं, सो कंडक्टर को न चाहते हुए भी युवती से बातचीत का सिलसिला रोककर यात्रियों को उतारने के लिए आगे आना पड़ता। इसी सिलसिले में गेट खोलने-बंद करने की तरद्दुद उठानी पड़ती। इसी क्रम में उससे गेट के बिल्कुल पीछे वाली इकलौती सीट पर बैठे सज्जन के दाएं पैर में गेट की हल्की सी टक्कर लग गई। कंडक्टर ने सौजन्यतावश सॉरी कहा तो उन्होंने "कोई बात नहीं" कहकर उसका अहसान चुकाना चाहा , लेकिन जब कंडक्टर की गलती से दुबारा उनके पैर में चोट लगी और कंडक्टर ने पुनः सॉरी कहा तो उनका दर्द जुबां पर आ गया। बोले, कोई बात नहीं....दिल पर तो पहले भी कई बार खा चुका हूं, इस बार पैर पर भी सही। नौजवान कंडक्टर हाजिरजवाब था। उसने कहा-अंकल, हमारी उम्र में दिल पर चोट खाई होगी। इस पर वे सज्जन बोले, बेटा, दिल पर चोट खाने की कोई उम्र नहीं होती। यह मौका इस उम्र में भी मिल जाए तो अचरज नहीं किया करते। हां, एक बात जरूर कहना चाहता हूं कि मोहब्बत में सिर्फ माशूका ही दिल पर चोट नहीं देती, जिंदगी भी कई बार ऐसी चोट दे जाती है, जिससे उबरना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन होता है।

कल रात फेसबुक पर एक मित्र की वॉल पर चस्पा यह गजल " इश्क में हम तुम्हें क्या बताएं..." सुनी तो पिंक बस का अपना वह  सफर बरबस ही याद आ गया।

15 दिसंबर 2020 जयपुर


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