काफी दिनों से ब्लॉग जगत से गायब हूं। लिखने की कौन कहे, पढ़ने तक का समय नहीं मिल पाता। आज कहीं यह विचारों को उद्वेलित करने वाली कविता पढ़ी, तो सोचा कि आपसे भी शेयर करूं। वरिष्ठ समाजवादी नेता रामदत्त जोशी ने यह कविता लिखी थी। वे प्रजा समाजवादी पारटी के टिकट पर नैनीताल जिले काशीपुर से दो बार विधायक रहे। जैसा कि हमेशा से होता आया है, सिद्धांतों से समझौता नहीं करने वाला इस शख्स का दशकों पहले गरीबी और अभाव में निधन हो गया। श्रद्धांजलि सहित प्रस्तुत है उनकी यह कविता----
नैनीताल की शाम
मैं एक अघोषित पागल हूं. जो बीत गया मैं वो कल हूं.
कालांतर ने परिभाषाएं, शब्दों के अर्थ बदल डाले,
सिद्धांतनिष्ठ तो सनकी हैं, खब्ती हैं नैतिकता वाले,
नहीं धन बटोरने का शऊर, ज्यों बंद अकल के हैं ताले,
ईमानदार हैं बेवकूफ़, वह तो मूरख हैं मतवाले?
आदर्शवाद है पागलपन, लेकिन मैं उसका कायल हूं.
मैं एक अघोषित पागल हूं.
निर्वाचित जन सेवक होकर भी मैंने वेतन नहीं लिया,
जो फ़र्स्ट क्लास का नकद किराया भी मिलता था नहीं लिया,
पहले दरजे में रेल सफ़र की फ्री सुविधा को नहीं लिया,
साधारण श्रेणी में जनता के साथ खुशी से सफ़र किया,
जो व्यर्थ मरूस्थल में बरसा मैं एक अकेला बादल हूं.
मैं एक अघोषित पागल हूं.
जनता द्वारा परित्यक्त विधायक को पेनशन के क्या माने?
है एक डकैती-कानूनी, जनता बेचारी क्या जाने?
कानून बनाना जनहित में जिनका कत्तर्व्य वही जाने-
क्यों अपनी ही ऐवर्य वृद्धि के नियम बनाते मन-माने?
आंसू से जो धुल जाता है, दुखती आंखों का काजल हूं.
मैं एक अघोषित पागल हूं.
सादा जीवन, ऊंचे विचार, यह सब ढकोसले बाजी हैं?
अबके ज्यादातर नेतागण झूठे पाखंडी पाजी है,
कुर्सी पाने के लिए शत्रुवत सांप छछूंदर राजी हैं,
कोई वैचारिक-वाद नहीं, कोई सैद्धांतिक सोच नहीं,
सर्वोपरि कुर्सीवाद एका, जिसका निंदक मैं पागल हूं.
मैं एक अघोषित पागल हूं.
है राजनीति तिकड़म बाजी, धोखे, घपले, हैं घोटाले,
गिरते हैं इसी समुंदर में, सारे समाज के पतनाले,
गंगाजल हो या गंदाजल, हैं नीचे को बहने वाले,
संपूर्ण राष्ट्र का रक्त हो गया है विषाक्त मानस काले,
इसके दोषी जन प्रतिनिधियों को अपराधी कहता पागल हूं.
मैं एक अघोषित पागल हूं.
बापू के मन में पीड़ा थी, भारत में व्याप्त गरीबी की,
समृद्ध तबके के गांधी ने आधे वस्त्रों में रहकर ही,
ग्रामीण कुटीरों से फूंकीथी स्वतंत्रता की रणभेरी,
उनका संदेशा था ‘शासक नेताओं रहना सावधान’
सत्ता करती है भ्रष्ट, मगर यह पागलपन है, पागल हूं.
मैं एक अघोषित पागल हूं.
कितने कमरे!
6 months ago
1 comment:
Mujhe nahi lagate hai aghohit pagal.....
Thanking you
Suresh Pandit
Emails: biharsamajsangathan@gmail.com
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