डेढ़-दो माह के लंबे अंतराल के बाद आज फिर आपलोगों से मुखातिब हूं। बात ही कुछ ऐसी हुई कि व्यस्तताओं के बावजूद इस अनुभव को शेयर करने से खुद को रोक नहीं पाया। पिछले कुछ दिनों से अपना एक छोटा सा मकान बनवा रहा हूं। इसी के सिलसिले में आज प्लबंर से लैट-बाथ की फिटिंग की वस्तुएं लिखवा रहा था। जैसे-तैसे पूछ-पूछ कर वस्तुओं की लिस्ट बनाई। इस दौरान प्लम्बर ने एक वस्तु लिखवाई- ऑरिजिनल। मैं सकते में आ गया। यह क्या चीज है। आईएसआई मारका वस्तुएं खरीदने की ताकीद तो आम बात होती है और ब्रांड कंपनियों के डुप्लीकेट से बचने की सलाह भी दी जाती है परंतु खालिस ऑरिजिनल यह क्या बला है। मैंने जब उसे और स्पष्ट करने को कहा तो उसने कहा कि अरे भाई साहब, वही पेशाब करने वाला। तब बात मेरी समझ में आई कि वह यूरिनल की बात कह रहा है। उस बेचारे की भी क्या गलती है। कई सारी आम जरूरत की वस्तुएं अपने अंग्रेजी नाम से ही जानी-पहचानी जाती हैं। उनका हिंदी नाम जानने की न तो कोई कोशिश करता है और न ही यह प्रचलन में आ पाता है। दुआ करें कि ऐसी वस्तुओं के हिंदी नाम भी प्रचलन में आएं और जुबान पर चढ़ें।
5 comments:
बहुत ही अच्छी रचना....!जो महँगी है वही ओरिजनल है..शायद..
हमें बात कुछ जमी नहीं. हमने अब तक किसी के घर में उरिनल नहीं देखा. या तो देसी टाइप का सीट होता है या फिर अंग्रेजी कमोड उसी में यूरिन भी करते हैं.
कुछ का कुछ प्रचलित हो जाता है ज्यादातर ...
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
wah wah
Aap v original aat likhate hai.
Suresh Pandit
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