Wednesday, February 25, 2009

नौटंकी तो हम करते हैं


पिंकसिटी में सांस्कृतिक आयोजनों के हृदय स्थल जवाहर कला केंद्र के शिल्पग्राम में मंगलवार शाम नौटंकी देखने का सुयोग मिला। गांव छोड़े हुए करीब 25 साल हो गए, इस दरम्यान कभी नौटंकी देखने का मुहूर्त नहीं बना। वैसे भी महानगरों में ऐसे आयोजन विरले ही होते हैं, फिर रात की नौकरी के कारण इनसे महरूम ही रहना पड़ता है। बचपन से किशोरावस्था तक गांव में दुरगा पूजा के समय मेले में नौटंकी और बिदेसिया देखा करता था।
पुरानी बातें तो फिर कभी होंगी, अभी तो कल की बात। करौली से आए कलाकारों के दल ने आशा वरमा के निरदेशन में `हरिश्चंद्र तारामती´ की प्रस्तुति दी। गीत व नृत्य के साथ संवादों की बेहतरीन अदायगी ने दर्शकों को काफी प्रभावित किया। शिल्पग्राम में गांव सा माहौल साकार हो उठा और नगाड़े व ढोलक की जुगलबंदी ने इसमें चार चांद लगा दिए। पैर से बजने वाला हारमोनियम भी कई दर्शकों के लिए अजूबा बना हुआ था। कलाकारों ने राजा हरिश्चंद्र, उनकी पत्नी तारामती, पुत्र रोहिताश और ऋषि विश्वामित्र के पात्र में अपने जीवंत अभिनय से जान डाल दी। रोहिताश के मरने के बाद तारामती के विलाप के समय कई दर्शक आंसू पोंछते नजर आए। बिना किसी ताम-झाम और रीटेक की सुविधा के खुले रंगमंच पर ऐसी प्रस्तुतियों के लिए कलाकारों की सराहना की ही जानी चाहिए। हां, इस दौरान नगाड़ा व ढोलक बजाने वाले कलाकारों की आपस में हंसी-मजाक पर मुस्कुराहट अवश्य ही मुझ जैसे अन्य कई दर्शकों को भी खली होगी।
खैर, जिस विशेष बात ने मुझे यह ब्लॉग लिखने को प्रेरित किया, उसकी चरचा किए बिना बात अधूरी रह जाएगी। नाटक की समाçप्त के बाद आशा वरमा ने पात्रों का परिचय कराया। इस दौरान उन्होंने नौटंकी कला के अस्तित्व पर आ रहे संकट की बात की, सरकार की ओर से कलाकारों को प्रोत्साहन नहीं मिलने पर अफसोस जताया। इन सबसे आगे बढ़कर उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और फिल्मों में राजनेताओं को नौटंकीबाज कहने पर रुंधे गले और कड़े शब्दों में आपत्ति जताई। इस दौरान उनकी चिंता वाकई आंसुओं में डूबी हुई थी और यह दर्द उस दर्द से कहीं बढ़कर था, जो उन्होंने तारामती के किरदार में बेटे रोहिताश के निधन पर विलाप करते हुए दिखाया था। आशा वरमा का कहना था कि नौटंकी करना इतना आसान नहीं है कि राजनेता कुछ भी गलत-सलत करें तो इसे नौटंकी करार दे दिया जाए। उन्होंने कहा कि नौटंकी तो वह है जिसे हम कलाकारों ने तीन घंटे तक किया और आप सबने देखा। नौटंकी करने में कलाकारों को इन पात्रों में अपनी आत्मा डालनी पड़ती है, ये राजनेता क्या नौटंकी करेंगे जिनकी आत्मा होती ही नहीं है।

4 comments:

संगीता पुरी said...

हां , बिल्‍कुल सही कहा ....नौटंकी करना इतनी बडी कला है ... और हमलोग किसी को भी अनायास कह देते हैं ....यह नौटंकी कर रहा है ।

Anonymous said...

आपके बहाने इस नौटंकी को हमने भी देख-जी लिया। सुंदर।

नीरज गोस्वामी said...

सच कहा ...नौटंकी करना आसान नहीं होता...जवाहर कला केंद्र की बात से मुझे जयपुर याद आ गया...अब भी जब घर जाता हूँ इसका चक्कर लगाये बिना चैन नहीं आता...हमारे घर से मात्र दस मिनट का रास्ता है...बहुत अच्छा लगा आपको पढ़ कर...
नीरज

varsha said...

netaon ke sandarbh mein yah samman soochak shabd nahin istemal hona chahiye.