Saturday, November 15, 2008

जूठे दोने में छिपा बड़ा सच



करीब सत्रह साल बाद इस बार छठ पर्व पर घर जाने का अवसर मिला। इतने लंबे अरसे बाद मां-बाबूजी, छोटे भाई, अन्य परिवारजनों, बचपन के दोस्तों और ग्रामजनों के सान्निध्य में इस पर्व के दौरान घर होने का जो सुख मिला, उसकी बात फिर कभी। अभी तो कुछ और ही...जो कई दिनों में मन में उमड़-घुमड़ रहा है। छठ के परना के दिन ही जयपुर लौटने का कार्यक्रम था। शाम को ट्रेन थी। पटना में पढ़ रहा भतीजा भी सी-ऑफ करने आया था।
बिहार की पहचान जिन कुछ चीजों से होती है, उनमें छठ पर्व, लिट्टी-चोखा, भिखारी ठाकुर का बिदेशिया, विद्यापति के गीत आदि के नाम गिनाए जा सकते हैं। दोपहर को ही घर से निकला था, सो भूख लगी थी। स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर एक पर लिट्टी-चोखा का स्टॉल देखा, तो खाने का लोभ संवरण नहीं कर सका। चाचा-भतीजे दोनों ने चार-चार लिट्टी खाई। भतीजे के लिए तो यह विशेष मायने नहीं रखता, क्योंकि उसे तो घर पर भी जब चाहे, इसका स्वाद चखने को मिल जाता है, लेकिन मुझे तो यह सुख पाने के लिए बिहार की यात्रा ही करनी पड़ती है।
खैर....., स्टॉल के बगल की खाली जगह में जूठे दोने रखने के लिए प्लास्टिक की बड़ी बाल्टी रखी थी। ट्रेन आने में देर थी, सो मैं उस स्टॉल से थोड़ी दूर एक नंबर प्लेटफॉर्म पर ही बैठ गया। इसी बीच सहसा मेरी नजर उस जूठे दोने वाली बाल्टी पर चली गई। मैले-कुचैले कपड़ों में एक नौजवान जूठे दोनों से बचा हुआ चोखा एक दोने में इकट्ठा कर रहा था। लिट्टी तो बमुश्किल ही कोई जूठन छोड़ता होगा, सो जूठे चोखा से ही वह अपनी पेट की आग को बुझाने के जतन में लगा था। यह दृश्य देख आत्मा रो उठी। मन हुआ कि स्टॉल मालिक को कहकर उसे तृप्त करा दूं। मगर यह क्या, जैसे ही उस नौजवान के पास पहुंचा, वह डर के मारे नौ दो ग्यारह हो गया। मैं आवाज लगाता रह गया लेकिन उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा। न जाने इससे पहले रेलवे विभाग के कर्मचारियों ने उससे ’यादती की हो, जिससे उसके मन में डर समा गया हो।
हमारे राजनेता भले ही विकास के कितने ढिंढोरे पीट लें, लेकिन जब तक ऐसे दृश्य बरकरार रहेंगे, हम सिर उठाकर अपने संपन्न होने की घोषणा नहीं कर सकते। कहीं न कहीं उन तथाकथित नीति नियंताओं के कारनामे ही ऐसे हालात के लिए जिम्मेदार हैं।

2 comments:

सतीश पंचम said...

यह दृश्य अब आम हो चला है, मुंबई जैसे महानगर में भी कई लोग इसी प्रकार जूठन बटोरते देखे जा सकते हैं....गरीबी जो न कराये।

suresh said...

Sir

Mahanagari me ye dekhe jate hai.

Thanking

Suresh