Wednesday, July 20, 2011

अक्षर के जादू से तरक्की का टोटका !

राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में पश्चिम बंगाल का नाम बदलने का प्रस्ताव

पश्चिम बंगाल का इतिहास बहुत ही समृद्ध और गौरवशाली रहा है। 'गीतांजलिÓ के लिए साहित्य का नोबेल पुरस्कार पाने का गौरव गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर के नाम के साथ जुड़ा है तो स्वतंत्रता संग्राम में नेताजी सुभाषचंद्र बोस की भूमिका नौजवानों के लिए अनुकरणीय रही है। समाज सुधार में राजा राम मोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर के नाम अग्रगण्य हैं तो फिल्म निर्माण-निर्देशन में सत्यजित राय अद्वितीय हैं। चिकित्सा क्षेत्र से राजनीति में आए डॉ. विधानचंद्र राय ने सेवा की ऐसी छाप छोड़ी कि आज उनका जन्मदिन डॉक्टर्स डे के रूप में मनाया जाता है। जादू के लिए भी प्रसिद्ध पश्चिम बंगाल में लंबे संघर्ष के बाद गत विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस का जादू ऐसा चला कि बाकी दलों का अस्तित्व ही कहीं खो सा गया। ऐसे में पिछले दिनों पश्चिम बंगाल मंत्रिमंडल की बैठक में राज्य का नाम बदलने का प्रस्ताव आया और बंग प्रदेश, बांग्ला प्रदेश, बंगराष्ट्र आदि नामों पर चर्चा की जा रही है। इसके पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि अंग्रेजी वर्णक्रम में नाम नीचे होने से राष्ट्रीय मंचों पर राज्य को अपनी बात रखने का मौका अंत में मिलता है। वर्तमान समय में प्रदेश की जनता मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व में अपने दमित सपनों को साकार होते देखना चाहती है। ऐसे में तृणमूल कांग्रेस सरकार को चाहिए कि अक्षर के जादू से तरक्की का टोटका करने की बजाय ईमानदार और पारदर्शी शासन से विकास की नई इबारत लिखे, जिससे नाम नहीं, बल्कि काम के आधार पर पश्चिम बंगाल पहली पंक्ति में आ जाए।

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