Monday, May 10, 2010

आस्था अपार, भाषा बनी दीवार


विश्व क्षितिज पर गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने भारत को जो पहचान दिलाई, उसके लिए प्रत्येक भारतवासी उनके प्रति कृतज्ञ है। नोबेल पुरस्कार से सम्मानित उनकी अमर कृति 'गीतांजलि ' अधिकतर बंगाली परिवारों में 'गीता' और 'रामचरितमानस' की तरह रखी जाती है। रेल मंत्री ममता बनर्जी ने बंगभूमि निवासिनी का कर्तव्य निभाते हुए रेलवे मंत्रालय की ओर से रवींद्र नाथ टैगोर की 150 वीं जयंती वर्ष के उपलक्ष में 9 मई को दिल्ली तथा राजस्थान से प्रकाशित होने वाले हिंदी के अखबारों में पूरे पृष्ठ का विज्ञापन प्रकाशित कराया। जिसे जैसे मौका मिलता है, अपनी जन्मभूमि, भाषा, आकाओं तथा जिस किसी के भी वह कृतज्ञ होता है, से उऋण होने के लिए इस प्रकार के प्रयास करता है। इससे मुझे कोई एतराज भी नहीं है, लेकिन हिंदी भाषी पाठक होने के नाते मेरी यह पीड़ा रही कि गुरुदेव के चित्र के नीचे बांगला भाषा में लिखी पंक्तियां मेरे लिए 'काला अक्षर भैंस बराबर' थीं। ममता बनर्जी को यदि यह राष्ट्रव्यापी विज्ञापन छपवाना ही था तो क्षेत्र विशेष की भाषा में यदि इसका लिप्यांतरण करवा देतीं तो अच्छा रहता।

4 comments:

Udan Tashtari said...

होना तो चाहिये हिन्दी में भी.

मुसाफिर said...

टैगोर विश्व नागरिक थे ...उनकी रचनाये देश काल भाषा की सीमायों से परे हैं .

http://rituondnet.blogspot.com/

तेरा आह्वान सुन कोई ना आए तो चल तू अकेला...

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

bilkul, hum bhi nahi samajh paye

biharsamajsangathan.org said...

Bhai saheb
Hum bhi nahi samajh paye.

Hona to hindi me hi thaa.

Suresh Pandit
Email: biharsamajsangathan@gmail.com
www.biharsamajsangathan.org