तीन-चार दिन पहले एक मित्र का फोन आया। उन्होंने शिव मंदिर में सहस्त्रघट का आयोजन रखा था। इसके बाद पंगत प्रसादी की भी व्यवस्था थी। सावन-भादो में राजस्थान के मंदिरों में ऐसे आयोजन आम हैं।
सहस्त्रघट के दौरान जहां अन्य लोग भगवान आशुतोष शिव के जलाभिषेक में लीन थे, मैं कहीं यादों में खो गया था। गांव छोड़े दो दशक से भी अधिक हो चुके हैं, लेकिन गांव से जुड़ी यादें आज भी मानस पटल पर अंकित हैं। गांव वालों की आजीविका का मुख्य साधन खेती ही होती है और खेती के लिए बरसात जरूरी है। किसी साल समय से बरसात नहीं होती थी तो गांव के लोग आपस में विचार-विमर्श करने में जुट जाते थे कि कैसे यह संकट टले और खुशहाली आए। आपस में चंदा एकत्रित कर ब्रह्मस्थान परिसर में लक्षावली महादेव पूजन किया जाता था। चमत्कारों में मेरा विश्वास नहीं है, लेकिन मैं स्वयं इसका साक्षी हूं कि कई बार पूजा संपन्न होते-होते झमाझम बरसात शुरू होने लगती थी। शिव महिमा से अभिभूत लोगों के चेहरे खिल जाते थे और शुरू हो जाती थी धान रोपने की तैयारी। कुछ लोग व्यक्तिगत स्तर पर भी लक्षावली महादेव पूजन का आयोजन करते थे। ऐसा अब भी हो रहा होगा, इसमें कोई दो राय नहीं है।
परंपराएं भले ही भिन्न हों, लेकिन भगवान भोलेदानी सर्वत्र समान रूप से पूजे जाते हैं। पूरी सृष्टि आज भी विश्व हित में हलाहल पीने वाले शिव की ऋणी है। उनके प्रति आस्था का अतिरेक ही है कि जल के देवता वरुण या फिर बारिश के देवता इंद्र की आराधना करने की बजाय लोग भगवान शिव की आराधना करते हैं और फल प्राप्त होने पर झूम-झूम से जाते हैं।
3 comments:
Aap ne sahi Likha.
Suresh
हर हर महादेव!
JAI BHOLE BABA. camatkaar hote hain janab...
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