Thursday, July 31, 2008

प्रेमचंद को भूल गए, रफी के तराने याद रहे


31 जुलाई को उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती थी और अमर गायक मोहम्मद रफी की पुण्यतिथि। शहर की सांस्कृतिक संस्थाएं और गायक कलाकार पिछले चार-पांच दिन से मोहम्मद रफी की पुण्यतिथि के उपलक्ष में कार्यक्रम आयोजित कर रहे थे। आज यानी 31 जुलाई को भी तीन-चार स्थानों पर कार्यक्रम हुए। साथी भाइयों से पता चला कि कार्यक्रम सफल हुए और इनमें गायक कलाकारों के साथ श्रोताओं की उपस्थिति अच्छी थी।
प्रगतिशील लेखक संघ की राज्य इकाई की ओर से पिंकसिटी प्रेस क्लब के श्रीप्रकाश मीडिया सेंटर में उपन्यास सम्राट प्रेमचंद की जयंती पर `प्रेमचंद और आज का मीडिया´ विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया था। मुझे पहले से ही अच्छा नहीं लग रहा था कि प्रेस क्लब की मुख्य सभागार की बजाय छोटे से मीडिया सेंटर में यह कार्यक्रम क्यों आयोजित किया जा रहा था। कार्यक्रम भारतीय परंपरानुसार 45-50 मिनट विलंब से शुरू हुआ। प्रेमचंद के साहित्य के प्रति अनुराग के कारण मैं भी ससमय कार्यक्रम में पहुंच गया। मीडिया सेंटर में महज छह दर्जन (यदि मेरी गिनती गलत न हो तो) कुर्सियां थीं, लेकिन उनमें से भी एक दर्जन से अधिक खाली थीं। ...और गिनती के इन श्रोताओं में कई ऐसे भी थे, जो कार्यक्रम के कवरेज के लिए आए थे। आयोजकों का निर्णय मुझे अच्छा लगा, अन्यथा वक्ताओं को मुख्य सभागार की खाली कुर्सियां मुंह चिढ़ाती हुईं नजर आतीं। प्रतिष्ठित कवि और मीडियाकर्मी लीलाधर मंडलोई मुख्य वक्ता थे। उन्होंने मुंशी प्रेमचंद से जुड़े विभिन्न बिंदुओं पर बखूबी प्रकाश डाला। उन्होंने जागरण में छपी प्रेमचंद की टिप्पणी को उद्धृत किया-`किताबों के प्रति उदासीनता ही सामाजिक आंदोलन के अभाव का मूल कारण है।´ दशकों पहले लिखी गई इस एक पंक्ति की प्रासंगिकता आज भी उतनी ही है, जितनी प्रेमचंद ने महसूस की थी। यह कटु सत्य है कि यदि हम भारतीयों की साहित्य और साहित्यकारों के प्रति उदासीनता खत्म हो जाए, तो भ्रष्टाचार, आतंकवाद, सांसदों की खरीद-फरोख्त जैसी घटनाएं समाज में बिल्कुल नहीं होंगी। मैं कदापि यह नहीं कहूंगा कि मोहम्मद रफी के गीत गुनगुनाना, गाना और सुनना तथा उन्हें याद करना गलत है, लेकिन भारतीय मानस के सच्चे कलमकार प्रेमचंद को भुलाना अवश्य ही अक्षम्य अपराध है। ...और अंत में......ईश्वर प्रेमचंद की आत्मा को शांति दें और हम भारतीयों को सद्बुद्धि।

2 comments:

Sajeev said...

हमने याद किया है भाई प्रेमचंद को देखिये http://kahani.hindyugm.com/ आपको अवश्य अच्छा लगेगा

Gyanesh upadhyay said...

yeh sanyog hai ki Rafi aur premchand ek hi din paida hue.
rafi gayaki ke dhurandhar rahe to premchand lekhan ke,
tulna theek nahi hai, hame dono par samaan roop se sochna chahiye
aur hum jaise sochne wale sochte bhi hain,
donon mahaan log desh ki do dhara hain, hume donon ka hi anand lena chahiye.
sahitya koi juloos nikalne ka mudda nahi hai, sahitya to satsang hai, jisme sadaa se chand hi log bhag lete rahe hain. sahitya ko wah bhi hammare yahan ke moulik upyogi sahitya ko bheed ka intejaar kabhi nahi karna chahiye. agar hum yeh sochenge ki sahitya mey bheed kahan hai, to hum dhere dhere sahitya se door hote jayenge.