Thursday, April 17, 2008

शर्म हमें मगर नहीं आती


विरोध और समर्थन के बीच बीजिंग ओलंपिक मशाल दौड़ गुरुवार को दिल्ली में संपन्न हो गई। ओलंपिक में हमारे धुरंधर जो कमाल करेंगे, उस पर अभी से कुछ कहना उचित नहीं है, वैसे भी मैं खेलों का कोई विशेषज्ञ नहीं हूं, लेकिन गुरुवार को राजपथ पर आयोजित समारोह के बारे में अपने अनुभव शेयर करना चाहता हूं।
भारतीय ओलंपिक एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी ने फरराटेदार अंग्रेजी में अपनी उपलब्धियां गिनाईं, जैसे कि दिल्ली में भारी सुरक्षा घेरे के बीच मशाल दौड़ आयोजित करवाकर उन्होंने ओलंपिक के सारे गोल्ड मैडल अपने कब्जे में कर लिए हों। दिल्ली के उपराज्यपाल भी हिंदी में बोलकर यह कैसे जताते कि उन्हें अंग्रेजी नहीं आती। नए नवेले खेल मंत्री एम. एस. गिल भी अंग्रेजी में ही शुरू हुए, लेकिन जल्दी ही उनकी समझ में आ गया कि जिन्हें इस साल या फिर आने वाले सालों में ओलंपिक पदक जीतकर लाना है वे तो हिंदी ही बेहतर समझते हैं, सो उन्होंने नौनिहालों से आह्वान किया कि कोई 50 साल बाद अब तो मिल्खा सिंह का रिकॉर्ड तोड़े। उन्होंने बखूबी जोश का संचार किया जो हिंदी और केवल हिंदी में ही संभव था।
सबसे अंत में सभा को संबोधित करने आए चीन के ओलंपिक संघ के उपाध्यक्ष लू जियांग ने चीनी भाषा में अपना वक्तव्य देकर हमारे रहनुमाओं को आईना दिखा दिया। ऐसे में तकलीफ इस बात पर होती है कि जब चीनी प्रतिनिधि अपने लिए दुभाषिये की व्यवस्था कर सकते हैं, तो हमारे राजनेता मिश्री सी हिंदी भाषा को क्यों त्याज्य समझते हैं। किसी जमाने में भारत में भी हिंदी का विरोध होता रहा हो, लेकिन आज तो अपने देश में सबके लिए हिंदी अपनी हो गई है। पूरब-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण सारे देश के युवक हिंदी समझते ही नहीं, धड़ल्ले से बोलते भी हैं। इतना ही नहीं, अब तो अंग्रेजी के कई नामचीन अखबारों में रोमन इंग्लिश में हिंदी के मुहावरे प्रयोग में लिए जाते हैं। इस सबके बावजूद हमारे राजनेताओं को कब यह बात समझ में आएगी कि जिनके वोटों की बदौलत उनका रुतबा बढ़ता है, अपनी भाषा बदलकर वे उन वोटरों से क्यों कट जाना चाहते हैं। आखिर हमारी राष्ट्रभाषा में क्या कमी है ? जिस दिन जनता समझ जाएगी, हो सकता है ऐसे राजनेता इस तरह के सार्वजनिक कार्यक्रमों में बोलने के लायक ही न रहें।

2 comments:

Satyawati Mishra said...

Ap kabhi Tamilnadu jayen to apko angreji na janane ka aphasos hoga kyonki vahan log hindi nahi samajhtey hai.

Manas Path said...

भाषा में कोई कमी नहीं है. मानसिकता गुलामी की है.