Friday, June 15, 2007

आज के इस आपाधापी के युग में हर कोई अपने आप में इतना मस्त है कि उसे अपने आस-पड़ोस में झांकने की फुरसत नहीं है। सब कुछ ऐसे ही है कि अपनी शादी हुई और लगन खतम। हमें कभी इस विंदु पर भी सोचना चाहिए कि क्या ऐसा करके हम मनुष्य होने के अपने कतर्व्य का निवर्हन कर रहे हैं। यदि ऐसा ही चलता रहा तो उस समय जब हम किसी कारणवश परेशानियों में फंसेंगे तो हमारे आंसू कौन पोंछेगा। पशु और मानव में अंतर की लक्ष्मण रेखा कौन खींच पाएगा। फिर तुलसीदास की उस चौपाई का क्या होगा- जे न मित्र दुख होहिं दुखारी। तिन्हहिं विलोकत पातक भारी।।
रामचरितमानस में ही एक पऱसंग आता है जब भगवान राम शरणागत विभीषण से उनके हालचाल पूछते हैं तो वे अपनी पीड़ा को व्यक्त करने से स्वयं को नहीं रोक पाते। फट से पड़ते हैं- भलु बस वास नरक कर ताता। दुष्ट संग जनि देहिं विधाता।।
आज जब हम अपने आसपास लोगों को स्वारथ में अभिभूत देखते हैं तो इच्छा होती है कि कोई हम सबको यह संदेश दे कि स्व से परे भी कुछ है और इस बाबत हमें अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए। हमें बचपन में जो संस्कार दिए गए, हम उन पर अमल नहीं करते तो हमसे यह आशा कैसे की जानी चाहिए कि हम अपने बच्चों को पड़ोसी से मित्रवत व्यवहार करने की अच्छी सीख दे पाएंगे। फिर बच्चा तो वही सीखेगा जो उससे बड़े व्यवहार में लाते हैं।
खुद पर विपत्ति आने पर आंसुओं की बरसात तो स्वाभाविक होती है, बात तो तब बने जब दूसरों के गम से भी आंखें नम हो पाएं।
आज के इस दौर में दिनानुदिन सुविधाएं बढ़ती जा रही हैं और उन्हें हस्तगत करने की तृष्णा है जो कभी खत्म होने का नाम ही नहीं लेती। हम वीकेंड पर अपनी फैमिली के साथ हजारों रुपए महज किसी मल्टीप्लेक्स में फिल्म औऱ पॉपकॉनर् सरीखी खाने-पीने की वस्तुओं पर खरच देते हैं और सुबह जब आयरन करने वाला डेढ़ रुपए के बदले दो रुपए फी कपड़े के हिसाब से मांगता है तो हमारी त्यौरियां चढ़ जाती हैं। क्या हम अपनी सुख-सुविधा का एक हिस्सा कम करके उसे उसकी पूरी मजदूरी देने लायक भी नहीं हैं। यह तो एक उदाहरण मात्र है।
हमारे और आपके जीवन में ऐसे कई पल आते होंगे जब आपको लगता होगा कि हम यदि किसी जरूरतमंद की समय रहते मदद कर देते तो वह आज उस हालात में नहीं होता जिसे भोगने को वह अभिशप्त है।
आईए, हम सब मिलकर संकल्प लें कि हम तभी सही मायने में खुश होंगे जब किसी के चेहरे पर मुस्कुराहट लाने में हम कामयाब हो सकेंगे। शुरुआत भले छोटे स्तर हो लेकिन इससे मिलने वाला सुकून किसी नोबेल पुरस्कार से कम नहीं होगा।

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