हां, तो मैं चरचा कर रहा था गुलाबी नगर की स्थापना के वषॅगांठ के उपलक्ष में मनाए जा रहे जयपुर समारोह के तहत आयोजित महाकवि बिहारी स्मृति कवि सम्मेलन की। आयोजन चूंकि सरकारी था,इसलिए खामियां भी थोक में थीं। पहले तो महान गीतकार गोपालदास नीरज के कवि सम्मेलन में आने का विज्ञापन अखबारों में प्रकाशित किया गया। कारतिक पूरणिमा के अबूझ सावे पर शादियों की भरमार थी,सो लोग उनमें व्यस्त थे और उनमें काव्यप्रेमी भी रहे ही होंगे। कारतिक पूरणिमा को तो नहीं बदला जा सकता था,लेकिन कवि सम्मेलन की तिथि तो बदली ही जा सकती थी। नगर निगम ने बड़ा सा पांडाल लगवाया था,वीआईपी के अलावा प्लास्टिक की कुरसियां लगाई गई थीं, लेकिन उन पर बैठने वाले नदारद थे। सदॅ रात में खुले में बैठकर कविता सुनना भी कम जीवट का काम नहीं है, जब सैकड़ों चैनल्स पर हजारों प्रोग्राम आपकी ड्राइंग रूम में मौजूद हों। पिंकसिटी का इस कदर विस्तार हो चुका है कि कुछ लोग तो १८-२० किलोमीटर की दूरी तय करके भी आए थे। इस सबके बावजूद गोपाल दास नीरज को न सुन पाने का उनको कितना मलाल हुआ होगा, इसका सहज अंदाजा आप लगा सकते हैं। हद तो तब हुई जब मुझे आज सीनियर ब्लॉगर व वेब पत्रिका इंद्रधनुष के संपादक डॉ. डी. पी. अग्रवाल से पता चला कि नीरज उस दिन भी अपनी पौत्री की शादी के सिलसिले में जयपुर में ही थे। वे एक होटल में बैठे आयोजकों का इंतजार करते रहे कि कोई उन्हें लेने आए और उधर श्रोताओं के इंतजार की इंतहा हो रही थी। एक और वरिष्ठ गीतकार जयपुर के ही ताराप्रकाश जोशी भी न जाने किन कारणों से कायॅक्रम में नहीं आ पाए। खैर, इन दोनों कवियों की रचनाओं से आपको भविष्य में जरूर रू-ब-रू कराऊंगा, यह वादा है मेरा।
हमारे राजनेताओं के दिल में कवियों के प्रति कितना सम्मान रह गया है, इसका अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि कायॅक्रम के मुख्य अतिथि सांसद गिरधारीलाल भागॅव मध्यरात्रि १२ बजे बाद प्रकट हुए। वह तो भला हो आयोजकों का कि उनकी प्रतीक्षा किए बगैर कायॅक्रम शुरू कर दिया, अन्यथा कौन किसका इंतजार करता, और इस बीच क्या-क्या होता, कहना मुश्किल होता। महापौर-उपमहापौर ने तो देर से ही सही, आने की जुरॅत ही नहीं समझी। आयोजन समिति के दो महानुभाव साहित्य साधना की नहीं, सत्ता के बल पर मंच पर आसीन थे। उनमें से एक सो रहे थे तो दूसरे मोबाइल की दुनिया में खो रहे थे। ऐसे में कवियों का हृदय भी उनके व्यवहार से हरषित नहीं हो रहा होगा, यह तो जगजाहिर है ही, श्रोता भी उनकी इन हरकतों को सहने को मजबूर थे।
ये कुछ हालात थे, मैं इनकी चरचा करना चाहता भी नहीं था, मेरा उद्देश्य आप काव्य रसिकों को महज कविताओं की दुनिया में ले जाने का था, लेकिन जब नीरज जी को न सुन पाने का वास्तविक कारण पता चला, तो कसक को दबा नहीं सका। जल्दी ही आपको कवि सम्मेलन के शेष कवियों की मधुर रचनाएं लेकर आपकी सेवा में उपस्थित होऊंगा। तब तक धन्यवाद,,, मेरी मनोव्यथा को आपने अनुभूत किया।
कितने कमरे!
6 months ago
1 comment:
समझ सकते हैं आपकी मनोव्यथा!!
गलती आयोजकों ही होती है जो ऐसे कार्यक्रमों में राजनेताओं को बुलाया जाता है!!
आयोजक राजनेताओं को बुलाकर उनसे जुड़ना या कुछ ना कुछ फ़ायदा लेना चाहेंगे तो इतना तो भुगतना ही होगा कि नेता नेतावत ही व्यवहार करेगा!!
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