आज शाम को एक ब्लॉगची मित्र के साथ नाश्ता करने गया। दुकान तो छोटी सी थी, लेकिन जैसा नाश्ता मिला, मन प्रफुल्लित हो गया। बदले में पैसे तो देने ही थे, लेकिन मुफ्त में सलाह देने की भारतीय आदत (रिलायंस कम्युनिकेशन के एक विज्ञापन में जैसा बताया जाता है) भी कहां छूटती है। मैंने दुकानदार को फटाफट सलाह दे डाली कि भाई, बाहर रंगीन बैनर लगवाओ, जिसमें आपकी दुकान की विशेषता और चटखारे व्यंजनों का बखान हो। इस पर साथ बैठे मित्र बेसाख्ता बोल उठे--आजकल तो बिना ताम-झाम के मुरगी भी अंडे नहीं देती। यह सुनते ही मेरे मन में कुछ कौंधा और मैं फ्लैशबैक में चला गया।
मित्र की बात में कितना दम है, यह तो वे भी नहीं बता पाए, और इसका सत्यापन करने के लिए महानगर में मुरगियां कहां से आएं, लेकिन पिछले दिनों इस मामले में मेरी जो ज्ञानवृद्धि हुई थी, उसे आपसे शेयर करते हैं।
.......तो यूं हुआ कि मैं पिछले मई-जून में एक परिचित के यहां गया था। वे मुझे अपनी पॉल्ट्री फामॅ दिखाने ले गए। रात के करीब दस बजे थे। फामॅ में २००-२०० वाट के बल्व जेनरेटर के बल पर जल रहे थे। मैंने पूछा कि भाई क्या मुरगियों को अंधेरे में नींद नहीं आती कि आपने बिजली नहीं रहने पर जेनरेटर चला रखा है। इस पर उन्होंने जो राजफाश किया, उससे मैं तो दंग रह गया। उन्होंने कहा कि रात में यह लाइट इसलिए जलाई जाती है कि मुरगियों को रात का अहसास न हो औऱ वे दिन के भ्रम में अनवरत दाना खाती रहें और मुटियाती रहें। मैं उनके इस जवाब से हक्का-बक्का सा रह गया। आदमी ने अपने लाभ के लिए क्या-क्या तरकीब निकाल लिए हैं। निरीह प्राणियों को निवाला बनाना तो न जाने प्रागैतिहासिक काल से ही चला आ रहा है, उन पर अत्याचार के कैसे-कैसे तरीके ईजाद किए जा रहे हैं। भगवान बचाए ऐसे आदमी से इन प्राणियों को, इस दुनिया को न जाने कब क्या सोच ले, कर डाले।
कितने कमरे!
6 months ago
2 comments:
भगवान किसको बचायेगा आदमी से वो तो ख़ुद बचता फ़िर रहा है. आदमी अब आदमी रह कंहा गया है. वैसे बात आपने बड़ी अच्छी कही आदम-जात के बारे में.
भाई, पोल्ट्री फार्म सारे ही ऐसे ही चलते हैं, क्या किजियेगा. हर धंधे की मजबूरियाँ हैं और आदमी धंधे से पैसे कमाने को मजबूर.
गहराई में सोचें तो मन व्यथित तो होता है.
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