गुलाबी नगर इन दिनों अपनी स्थापना का वषॅगांठ मना रही है। इस उपलक्ष में नगर निगम की ओऱ से एक माह तक चलने वाला--जयपुर समारोह-- आयोजित किया जा रहा है। इसके तहत नित नए कायॅक्रम हो रहे हैं। इसी कड़ी में कारतिक पूरणिमा पर शनिवार की रात को आमेर महल के पास, जहां जयपुर राजघराने ने महाकवि बिहारी का दयार बनाया था, उसी के समीप --महाकवि बिहारी स्मृति कवि सम्मेलन-- का आयोजन किया गया। आइए, आप भी कीजिए कुछ कविताओं का रसास्वादन।
इलाहाबाद से आए युवा कवि इमरान ने कुछ इस तरह से की शुरुआत-
अपने शहर की ताजा हवा ले के चला हूं, हर ददॅ की यारों मैं दवा ले के चला हूं
मुझको यकीन है कि रहूंगा मैं कामयाब, क्योंकि मैं घर से मां की दुआ ले के चला हूं।
२४ नवंबर को ही दिन में उत्तर प्रदेश के कई शहरों की अदालतों में बम धमाके हुए थे, फिर भी सांप्रदायिक सद्भाव हमारे देश की आत्मा में है, इसे जेहन में रखते हुए इमरान ने अपना हाल-ए-दिन कुछ यूं बयां किया-
चाक है जिगर फिर भी आए हैं रफू करके, जाएंगे हकीकत से तुमको रूबरू करके
प्यार की बड़ी इससे और मिसाल क्या होगी, हम नमाज पढ़ते हैं गंगा में वजू करके।
और फिर जग उठा इस युवा कवि का प्रेमी हृदय----
मेरा मन ये कहता है कह दूं मैं जमाने से, इक चुभन सी होती है इश्क को छुपाने से
जब से प्यार की मैंने शमां जलाई है, तब से डर नहीं लगता आंधियों के आने से
और अब प्यार के प्रतिमान बदले, उपमेय और उपमान बदले इन लफ्जों में......
तेरा चेहरा लगे अप्सरा की तरह, मैं गगन की तरह तू धरा की तरह
ये अदाओं का पेट्रोल छिड़को नहीं, वरना जल जाऊंगा गोधरा की तरह
ना हंसो दिल मेरा चाक हो जाएगा, हर इरादा खतरनाक हो जाएगा
मुस्कुराने की बमबारी जारी रही, तो दिल मेरा जलके इराक हो जाएगा।
रात जैसे-जैसे गहरा रही थी, कवि सम्मेलन अपने परवान पर पहुंचता जा रहा था। काव्य रसिक श्रोता कविताओं के समंदर में डूबने-उतराने लगे थे।
कानपुर से आईं शबीना अदीब बड़े ही अदब ओ करीने से श्रोताओं से रू-ब-रू हुईं। इश्क तो हुस्न की गलियों में भटकता ही रहता है, हुस्न भी कभी-कभी इश्क के लिए तड़प उठता है। उन्होंने इश्क से हुस्न की मनुहार और गरीबी को दुनिया से विदा करने का इजहार इन अल्फाजों में किया----
हमें बना के तुम अपनी चाहत, खुशी को दिल के करीब कर लो
तुम्हें हम अपना नसीब कर लें, हमें तुम अपना नसीब कर लो
गरीब लोगों की उम्र भर की गरीबी मिट जाए गर अमीरों
बस एक दिन के लिए अगर तुम जरा सा खुद को गरीब कर लो।
और फिर संग जीने-मरने की कसमें, प्यार का फसाना इन शब्दों में मुखातिब हुई श्रोताओं से........
हमेशा एक दूसरे के हक में दुआ करेंगे ये तय हुआ था
मिले कि बिछुड़ें मगर तुम्हीं से वफा करेंगे ये तय हुआ था
कहीं रहो तुम कहीं रहें हम मगर मोहब्बत रहेगी कायम
जो ये खता है तो उम्रभर ये खता करेंगे ये तय हुआ था
उदासियां हर घड़ी हों लेकिन, हयात कांटों भरी हो लेकिन
खुतूत फूलों की पत्तियों पर लिखा करेंगे ये तय हुआ था
जहां मुकद्दर मिलाएगा अब वहां मिलेंगे ये शतॅ कैसी
जहां मिले थे वहीं हमेशा मिला करेंगे ये तय हुआ था
लिपट के रो लेंगे जब मिलेंगे, गम अपना-अपना बयां करेंगे
मगर जमाने से मुस्कुरा कर मिला करेंगे ये तय हुआ था
किसी के आंचल में खो गए तुम, बताओ क्यों दूर हो गए तुम
जान देकर हक वफा का अदा करेंगे ये तय हुआ था
कवि सम्मेलन की बाकी कविताएं फिर कभी.....
1 comment:
बहुत बढिया मंगलम जी,
आपने तो घर बैठे ही कवि सम्मेलन में शामिल होने का खुशनुमा एहसास करा दिया. शेष कविताएं भी जल्दी से पढने का मौका दीजिए.
एक बात.
इस कवि सम्मेलन ले लिए जिन कवियों को बुलाया गया था, उनमें शीर्षस्थ नाम था नीरज जी का. मुझे नहीं पता कि कवि सम्मेलन में उनके न आने का क्या कारण घोषित किया गया, लेकिन, वे उस दिन और उसके बाद दो दिन इसी जयपुर में थे. हमने(अंजली सहाय और मैंने)-इन्द्रधनुष इण्डिया के लिए जब उनसे मुलाक़ात की तो उन्होंने कहा कि उनसे किसी ने सम्पर्क ही नहीं किया. आखिर हमारे लिए हमारे कवि-लेखक इतने उपेक्षणीय क्यों
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