Tuesday, October 30, 2007

ब्लॉग---अभिव्यक्ति का २०-ट्वेंटी


आइए, आज कुछ अभिनव अंदाज में अतिनूतन मुद्दे पर अपनी भावनाओं को शेयर करें। याद करें क्रिकेट टेस्ट मैच का वह जमाना जब पांच दिनों के बीच में न केवल खिलाड़ियों की थकान मिटाने के लिए, बल्कि दशॅकों की बोरियत दूर करने के लिए भी एक दिन का ब्रेक हुआ करता था। उन दिनों टेलीविजन प्रसारण या रेडियो कमेंट्री के बीच-बीच में विज्ञापनों की बाधा या यूं कहें कि एंटरटेनमेंट की बाध्यता नहीं हुआ करती थी।
फिर वन डे का दौर शुरू हुआ और महज ५०-५० ओवर में दशॅकों को फुल एंटरटेनमेंट की सुविधा मुहैया उपलब्ध होने लगी। न केवल खिलाड़ियों की व्यस्तता और मारकेट वैल्यू बढ़ी, दशॅकों का भी खूब मनोरंजन होने लगा।
......और अभी पिछले दिनों ट्वेंटी-ट्वेंटी का सुरूर जिस तरह पूरी दुनिया पर छाया रहा, उसके तो हम सब न केवल मुरीद रहे, बल्कि साक्षी भी बने। रही-सही कसर हमारे हीरो माही ने पूरी कर दी, जब उसकी टीम ने पहला विश्व कप भारत की झोली में डाल दिया। अपने देश में लोग मन्नत पूरी होने तक दाढ़ी-बाल बढ़ाकर रखते हैं, लगता है अपने महेंद्र के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ कि किस्मत का सितारा जब पूरी तरह रोशन हुआ, तो विपक्षी टीम के हौसले धोते-धोते धोनी ने अपने बालों को भी धो डाला।
........अब मैं अपने उस मुद्दे पर आता हूं, जिसके लिए मैंने बात शुरू की थी। ब्लॉग की दुनिया भी अभिव्यक्ति के २०- ट्वेंटी मैच सरीखी ही है। आपके मन में कोई विचार कौंधा, और आपने उसे अपने ब्लॉग पर डालकर उसकी चमक से उन सभी को चकाचौंध कर दिया, जिन्होंने आपकी साइट पर आने की जहमत उठाई। न संपादक की स्वीकृति का इंतजार, न प्रकाशक की असहमति की चिंता। हां, एक बात अवश्य खलती है कि वतॅमान में इसका एक सीमित पाठक वगॅ है, लेकिन जिस तरह इसका विस्तार हो रहा है, संभावनाएं समंदर की तरह विस्तृत हैं, इसमें कोई शक नहीं है। नेट की सुविधा, फोंट की उपलब्धता होने के बावजूद यदि कोई आपके विचारों को नहीं पढ़ पाता है, तो भी मायूस होने की कोई जरूरत नहीं है। कई लोगों ने साक्षर होने के बावजूद तुलसी बाबा की रामचरितमानस, दिनकर की उवॅशी, प्रेमचंद का गोदान और ऐसे न जाने कितने नामचीन लेखकों की नामचीन कृतियों में छिपा अमृतरस नहीं चखा, तो क्या इससे इन रचनाओं अथ च रचनाकारों की उपादेयता पर कोई असर पड़ा, नहीं...बिल्कुल नहीं।
और हां, एक बात और...कई बार तकनीकी समस्याएं आती हैं, तो इससे भी मायूस होने की जरूरत नहीं है। मेरा यकीन है कि जिस समय आप अपनी बाधा से दो-चार हो रहे होते हैं, इंटरनेट के इस चमत्कारी युग में उसी क्षण आपका कोई भाई उन बाधाओं से दो-दो हाथ कर रहा होता है। यदि ऐसा नहीं होता तो इंटरनेट के फलक पर आज हिंदी का वह स्थान नहीं होता, जो आज दिख रहा है।
और अंत में....इन शब्दों के साथ क्षमायाचना कि न तो कम्प्यूटर की तकनीकों में अपना दखल है और न ही क्रिकेट की कठिन शब्दावलियों को ही आज तक समझ पाया हूं, फिर भी इनका सहारा लेकर इतना कुछ कहने की जुरॅत कर डाली......कभी कभी हमने इस दिल को ऐसे भी बहलाया है,जिन बातों को खुद नहीं समझे, औरों को समझाया है।
जय ब्लॉग, जय ब्लॉगर बंधुओं।

5 comments:

Manish Kumar said...

सही कह रहे हैं आप...इसी तरह दिल की बात करते रहें।

Udan Tashtari said...

जय हो जय हो!! सही है दिल बहल गया. बधाई.

राजीव जैन said...

बधाई हो
सही कहा आपने

बालकिशन said...

बहुत अच्छा और सही लिखा आपने. आपको बधाई.

Ashish Maharishi said...

दिल की बात करे दिल वाला.