ऑस्ट्रेलिया के साथ एक दिवसीय मैचों की सिरीज में हमारी नाट तो पहले ही कट चुकी थी, लेकिन जव युवा गेंदबाज मुरली कारतिक ने १० ओवर में तीन मेडन रखते हुए केवल २७ रन देकर ऑस्ट्रेलिया के छह नामी-गिरामी बल्लेबाजों को पैवेलियन लौटा दिया तो ऐसा लगा कि उत्साह से लबरेज हमारे बल्लेबाज २०-२५ ओवर में यह आसान सा स्कोर बनाकर वल्डॅ चैम्पियन को चुनौती दे सकेंगे। लेकिन यह क्या, जब धोनी के धुरंधर बल्लेबाजी करने उतरे तो ऐसा लगा कि उन्हें रन बनाने की नहीं, पैवेलियन लौटने की जल्दबाजी थी। १९४ के स्कोर तक पहुंचने में हमारे आठ बल्लेबाज शहीद हुए और बाकी बचे जवानों ने खेल को ४६ ओवर तक खींचा। इस बीच कई बार ऐसा लग रहा था कि एक बार फिर पराजय का वरण कर हम मेहमान टीम को जीत का तोहफा देंगे। उथप्पा को बधाई कि उन्होंने सबसे अधिक ४७ रन बनाए। दूसरे नंबर पर रहे ऑस्ट्रेलिया के गेंदबाज, जिनकी मेहरबानी से हमें ३६ रन बतौर एक्सट्रा मिल गए थे। हालांकि हमारे गेंदबाजों ने भी उदारता बरतते हुए ३३ रन एक्सट्रा में दे दिए थे।
और अंत में........मैं न तो क्रिकेट का जानकार हूं और न खिलाड़ी। एक आम भारतीय होने के नाते जो पीड़ा हुई उसे शेयर कर रहा हूं।
कितने कमरे!
6 months ago
1 comment:
मानो आपने हमारी पीड़ा बयान कर दी. बहुत आभार.
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