राष्ट्रकवि रामधारी दिनकर की देश के बलिदानी स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान में लिखी कविता---कलम आज उनकी जय बोल---में आंशिक परिवतॅन (सादर क्षमायाचना सहित) के साथ हाजिर हूं।
बदलाव प्रकृति का शाश्वत नियम है और समय के साथ चलने के लिए जरूरी भी, इसके बावजूद कुछ बातें ऐसी होती हैं, जिनका असर कम होना असरदार हो सकता है। जी हां, आप ठीक समझे, मेरा इशारा दिनानुदिन कम हो जाते जा रहे कलम के प्रयोग की ओर है। मोबाइल और इंटरनेट के इस युग में जैसे लगता है कलम के खिलाफ कोई अघोषित जंग छिड़ी हुई है। गोरी अब सांवरिया को खत नहीं लिखती बल्कि एसएमएस करती है और खतों में फूल के स्थान पर पिक्चर मैसेज या एमएमएस भेजे जाते हैं। रही-सही कसर इंटरनेट पूरी कर देता है, जहां आप मनचाही-मनमानी भावनाओं, तस्वीरों के आदान-प्रदान करने के साथ ही चैटिंग का भी आनंद ले लेते हैं। किसी का फोन नंबर लेना होता है तो आदमी डायरी-कलम नहीं निकालता, मोबाइल में उसे फीड कर लेता है।
कामकाजी लोगों को देखिए, पहले बैंकों से पैसे निकालने के लिए कम से कम विड्राल फॉमॅ भर लेते थे, लेकिन एटीएम काडॅ और क्रेडिट काडॅ ने कलम निकालने की जरूरत ही खत्म कर दी। ऑफिसों में कमॅचारियों को मैग्नेटिक काडॅ दे दिए जाते हैं, जिससे उनकी उपस्थिति दजॅ हो जाती है, पंजिका में हस्ताक्षर कौन करे।
विज्ञान से मेरा कोई वैर नहीं है, मैं भी नित नई आने वाली टेक्नीक से रू-ब-रू होना व उसे प्रयोग में लाने के बारे में सीखना चाहता हूं, सीखता भी हूं, लेकिन मेरी बस इतनी गुजारिश है कि जब भी कभी अवसर मिले, कलम का प्रयोग अवश्य करें। दिनभर की गतिविधियों में कोई बात दिल को छू गई हो, डायरी पर अंकित कर लें, बच्चे को कोई जरूरी हिदायत देनी हो तो लिखकर दें, कोई ऐसा बचपन का बिछुड़ा मित्र हो, जिन तक आधुनिक संचार साधनों की पहुंच नहीं हो, आप अपनी मधुर यादों को ताजी कर सकते हैं। एक और कारण, मोबाइल से बात करते समय, साइबर कैफे में बैठे हुए हमारा ध्यान जब जेब पर जाता है तो हम भावनाओं पर अंकुश लगाने को बाध्य हो जाते हैं, लेकिन कागज-कलम की दुनिया में ऐसी बंदिशें नहीं होतीं, भले ही डाक खचॅ और स्टेशनरी की कीमतें बढ़ गई हों। लेखनी जिंदा रहेगी, लेखन जारी रहेगा तो लिखने वाला तो अमर होगा ही।
अंत में यही कहना चाहूंगा--
रेगिस्तानों से रिश्ता है बारिश से भी यारी है
हर मौसम में अपनी थोड़ी-थोड़ी हिस्सेदारी है।
1 comment:
सही कहा आपने
थोडा बहुत तो रोज लिखना ही होगा
वर्ना किसी दिन पता चले कि पेन से लिखने के नाम पर डब्बा गोल
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