तेरा वैभव अमर रहे माँ
इन दिनों नवरात्र का उत्साह चरम पर है। स्थान-स्थान पर वृहत पांडाल बनाए गए हैं। देश ही नहीं, विदेशों में भी जहां कहीं भारतवंशी हैं, पूजा का उत्साह देखते ही बनता है। आकषॅक स्वरूपों में मां भगवती की प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं। नित नए सांस्कृतिक कायॅक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से ही घर-घर में लोग शक्ति की आराधना में लीन हैं। इस दौरान देवी भगवती की महिमा के गान के साथ सप्तशती के पाठ किए जा रहे हैं। इस पवित्र पुस्तक के कवच-कीलक-अगॅला में एक श्लोक का अंश है- रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि...यानी हे मां जगदम्बे, मुझे मनोहारी रूप दो, जीवनसंग्राम में विजय का वरण कराओ, जिस भी काम में हाथ डालूं, उसमें यश ही यश मिले और सबसे बढ़कर मन से ईष्या, द्वेष, बेईमानी आदि कुत्सित भावों का नाश हो। ईमानदारी से हम सोचें कि हममें से कितने इस पर पूरी तरह अमल कर पाते हैं। रूप-विजय-यश की कामना तो सबको होती है, लेकिन कितने लोग अपने मन से उपरोक्त कुत्सित भावों को मिटा पाने में समथॅ हो पाते हैं। ईश्वर की सत्ता और स्वगॅ के अस्तित्व में कहां तक सच्चाई है, यह तो पता नहीं, मगर यह सवॅदा सत्य है कि इसकी कल्पना के पीछे यह तकॅ अवश्य रहा होगा कि मनुष्य दानवत्व को छोड़कर देवत्व की प्राप्ति के लिए जीवनभर सत्कमॅ करे तथा मरणोपरांत स्वगॅ की आकांक्षा तथा नरक के भय से कभी भी गलत कायॅ न करे। नवरात्र के इन दिनों में जितने लोग विधिपूवॅक पूजन-अनुष्ठान करते हैं या पूजा-पांडालों और मंदिरों में भगवती के दशॅन करते हैं, वे ही यदि अपने आचरण में देवी के गुणों को ढाल लें तो यह धरती स्वगॅ बन जाए। अपराध अथ च आतंकवाद, भ्रष्टाचार, बेईमानी और ऐसी न जाने कितनी बुराइयां इस संसार से तौबा कर लें। या देवि सवॅभूतेषु.......रूपेण संस्थिता वाले श्लोकों में तो देवी भगवती की सत्ता को सवॅजगतमयी बताया गया है, फिर कौन ऐसा बचेगा जिसके प्रति हमारा व्यवहार कलुष लिए होगा। यदि हम अपने व्यवहार में निमॅलता नहीं लाते हैं, व्यवहार से कलुष को नहीं हटा पाते हैं, तो सदियों से हो रही यह देवी-शक्ति आराधना आने वाले युगों-युगों तक चलती रहे, मानवता का इससे कोई भला नहीं होगा। खुद को तसल्ली देने के लिए हम इन नौ दिनों में साधक बने रहें, लेकिन मन को साधे बिना सब कुछ बेकार है। हां, मां भगवती की सत्ता तो जैसी थी , वैसी बनी ही रहेगी। फिर मेरा मन यह कहने को विवश होगा......तेरा वैभव अमर रहे मां, हम इंसान बनें न बनें।और अंत में, मेरा इरादा किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है, यह तो बस मेरे विचार हैं। इन शब्दों में आप सभी से क्षमा चाहता हूं--------------यह नहीं आरोप की भाषा शिकायत भी नहींददॅ का उच्छास है यह और कुछ मत मानिएगा।जय भवानी, जय जगदंबे
1 comment:
सत्य वचन!!
जय भवानी, जय जगदंबे!!
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