केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम ने आम बजट से पहले गुरुवार को संसद में वषॅ 2007-08 का आरथिक लेखा-जोखा पेश करते हुए आरथिक सरवेक्षण की रिपोटॅ में देश में लगातार बढ़ रही महंगाई पर गहरी चिंता जताई। इतना ही नहीं, उन्होंने खाने-पीने की वस्तुओं की कीमतों में हो रही बढ़ोतरी के मद्देनजर महंगाई के और भी बढ़ने की आशंका से इनकार नहीं किया। सत्तानशीं ही यदि आशंका जताकर ही अपने फजॅ की इतिश्री कर लें, तो जनता का तो भगवान ही रखवाला है। आज जैसे हालात हैं, इसमें आम आदमी को दाल-रोटी मिलना भी मुश्किल हो गया है, बात दीगर है कि मालदार लोगों को मटर-पनीर थोक में मिल रहा है।
अब चिदम्बरम साहब को कौन समझाए कि इस महंगाई के लिए उत्तरदायी कौन है। यूपीए सरकार आने से पहले महंगाई कितनी कम थी, देश में आरथिक इसके गवाह देश के करोड़ों नागरिक हैं और ये सभी नागरिक मेरी तरह भाजपा के वोटर नहीं हैं, लेकिन सच्चाई के आईने को तो वे तोड़ने से रहे। आपको याद होगा कि उस समय ब्याज दरों में भारी कमी के कारण कितनी अधिक संख्या में हाउसिंग लोन लेकर लोगों ने अपने घरों के सपने साकार किए थे। उस समय ब्याज दरें कम होने के बावजूद जिन्होंने फिक्स्ड रेट पर
हाउसिंग लोन नहीं कि फ्लोटिंग रेट रहेगी तो फायदे में रहेंगे, ऐसे लोगों के सपनों पर यूपीए सरकार की नीतियों ने जो हमला किया, उसके बाद वे चीखने लायक भी नहीं रहे।
गिनाने के लिए तो बहुत सी बातें हैं जिनका असर यूपीए की सरकार के दौरान आम आदमी को भुगतना पड़ रहा है। अब अंतिम साल में ऐसा लग रहा है कि चिदम्बरम का चित्त भी शुक्रवार को डोलेगा और वे आगामी चुनाव में यूपीए की चेयरपसॅन सोनिया गांधी की सोणी सी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मनमोहनी छवि बनाने के लिए कुछ ऐसा बजट लाएंगे कि आम आदमी को कुछ राहत मिल पाए। वैसे तो यह बजट आम आदमी के लिए आंकड़ों का मकड़जाल ही होता है, उसे तो बस इतने से ही मतलब होता है कि उसके जरूरत की चीजें कितनी सस्ती हो पाती हैं औऱ उसका जीवन कितने सहज-सरल तरीके से बीत सकता है। अगर कुछ ऐसा हुआ भी (जिसकी अत्यधिक आशा नहीं की जानी चाहिए) तो भी कांग्रेस नीत यूपीए सरकार का बेड़ा गकॅ होने से कहां तक बच पाता है, यह तो इस देश का वोटर और आने वाला समय ही बताएगा।
1 comment:
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Rajani Ranjan
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