अभी तीन-चार दिन पहले भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के घोषित दावेदार लालकृष्ण आडवाणी ने पूवॅ प्रधानमंत्री कवि हृदय और वरिष्ठ राजनेता अटल बिहारी वाजपेयी को सरवोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’
से सम्मानित करने की मांग क्या की, ‘भारत रत्न’ के दावेदारों के कई सारे नाम सामने आने लगे। गिरते स्वास्थ्य, बढ़ती आयु और न जाने किन कारणों से वाजपेयी ने राजनीति से किनारा सा क्या किया, भाजपा ने आडवाणी को भावी पीएम के रूप में प्रोजेक्ट करना शुरू कर दिया। अब आडवाणी जी भी तो किस्मत लेकर ही आए हैं, वोट तो पहले डल ही चुके थे, गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव परिणामों में भाजपा की विजययात्रा ने उनके मंसूबे को पंख लगा दिए। वाजपेयी ने अपनी वरिष्ठता को किनारा कर आडवाणी के लिए अवसरों के द्वार खोल दिए तो आडवाणी उनसे उऋण होने का उपक्रम कैसे नहीं करते। उन्होंने शायद यह सोचकर यह पासा फेंका हो कि आदरणीय अटल बिहारी वाजपेयीजी ‘भारत रत्न’ मिलने के बाद वरिष्ठता की बोझ के तले और भी दबे रहें और चाहकर भी देश की सक्रिय राजनीति में कदम रोपने की कोशिश न करें।
आडवाणी की मांग पर यूपीए सरकार में सूचना व प्रसारण मंत्री प्रियरंजन दास मुंशी भी अपना वक्तव्य देने से नहीं चूके और कहने लगे कि भाजपा या फिर आडवाणी को ही पहले अटलजी का पूरा सम्मान देना चाहिए। भारत रत्न का फैसला तो तय प्रक्रियाओं के आधार पर ही होगा। इसके बावजूद दूसरे राजनीतिक दलों ने कोई सीख नहीं ली और अगले ही दिन वामपंथियों के नेता विमान बसु ने पश्चिम बंगाल के रिकॉडॅधारी पूवॅ मुख्यमंत्री और माकपा ब्यूरो सदस्य ज्योति बसु को ‘भारत रत्न’ देने की मांग कर डाली। वामपंथियों की मांगों को मानना या टालमटोल करते रहना केन्द्र की यूपीए सरकार की मजबूरी भी है, लेकिन ज्योति बसु ने खुद ही माकपा के मुखपत्र गणशक्ति में कहा कि वे ‘भारत रत्न’ की दौड़ में शामिल नहीं हैं। उन्होंने ईएमएस नम्बूदरीपाद द्वारा-पद्मिवभूषण-लौटाने का उदाहरण देते हुए कहा कि सरकार से पुरस्कार लेने की हमारी परंपरा नहीं है। जानने वाले जानते हैं कि उन दिनों माकपा की नीतियां क्या होती थीं और आज के हालात में क्या हैं।
अब सब कुछ इतना आगे बढ़ गया तो सोशल इंजीनियरिंग की आविष्कारक बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने राजनीतिक आका स्व. कांशीराम को मरणोपरांत ‘भारत रत्न’ देने की मांग कर डाली। राष्टरीय लोकदल के अध्यक्ष अजीत सिंह ने अपने पिता और पूर्व प्रधानमंत्री व किसान नेता चौधरी चरण सिंह के लिए ‘भारत रत्न’ की दावेदारी पेश कर दी।
न जाने यह फेहरिस्त और कितनी बढ़ती जाएगी। और कितने राजनेता अपने वरिष्ठों और आकाओं के लिए इस सरवोच्च नागरिक सम्मान की मांग करके उन्हें अपनी आदरांजलि और श्रद्धांजलि देकर खुद को कृताथॅ करने का उपक्रम करते रहेंगे। यदि इस तरह की मांग पर ही यह सम्मान दिया जाने लगा तो इसके लिए तय की प्रक्रियाओं का क्या औचित्य है।
मैं तो यह कहता हूं कि हमारे देश की जनता का सच्चा प्रतिनिधित्व करने वाला आम आदमी अपना ‘गंगाराम’ ही ‘भारत रत्न’ का सच्चा हकदार है। नेतृत्व करने वालों ने नेतृत्व किया तो उन्हें यह सम्मान चाहिए। गंगाराम तो आजादी के बाद से अब तक अपने सपनों को मरता देखता रहा है, इसके बावजूद उसकी जिजीविषा है कि वह जिंदा है, क्या उसके साहस और परिस्थितियों से लड़ते रहने के उसके पराक्रम का सम्मान उसे ‘भारत रत्न’ देकर नहीं किया जाना चाहिए।
बहस आडवाणीजी ने शुरू की है और इसकी कड़ियां से कड़ियां जुड़ती जा रही हैं, तो मैंने भी अपना उम्मीदवार मैदान में उतार दिया है और यह शायद आप सबका भी प्रतिनिधित्व करने का जज्बा रखता है। जब ‘भारत रत्न’ की घोषणा की जाएगी तब देखेंगे, संभावितों की सूची में अपने उम्मीदवार का नाम तो होना ही चाहिए।
जाते जाते एक सलाह भाजपा नेता प्रकाश जावडेकर को कोई सिखाए कि भाई भारत रत्न एक सम्मान है, न कि पुरस्कार। वे आडवाणी के बयान के अगले दिन टीवी पर दिन भर बकते रहे कि वाजपेयीजी नेहरू और इंदिरा के बाद सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे हैं। उनका राजनीतिक करियर गौरवपूर्ण रहा है और वे इस पुरस्कार के सच्चे हकदार हैं।
3 comments:
मंगलम जी इसे भी देखे
http://bolhalla.blogspot.com/2008/01/blog-post_2361.html
सही!!
प्रकाश जावड़ेकर के लिए तो सटीक बात कही आपने!!
भाई, मुझे तो यह आश्चर्य है कि हमारे मोबाइल व्यवसाइयों को अब तक यह क्यों नहीं सूझा कि वे इस मामले का फैसला अपनी तकनीक से करवा दें? अगर आप वाजपेयी को भारत रत्न दिलाना चाहते हैं तो अपने मोबाइल के मैसेज बॉक्स में जारं और टाइप करें....
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