खैर-खून, खांसी-खुशी, वैर-प्रीति मदपान
रहिमन दाबे ना दबे, जाने सकल जहान
जी हां, कवि रहीम ने बहुत सही फरमाया है मन का उछाह छिपाए नहीं छिपता। अभी-अभी 2007 की विदाई के दौरान अपने देश से प्रकाशित होने वाले पत्र-पत्रिकाओं ने वषॅभर की महत्वपूणॅ गतिविधियों पर केंद्रित विशेषांकों का प्रकाशन किया। अब अपने देश की बदकिस्मती कहें कि मुंशी प्रेमचंद ने दशकों पहले अपनी कहानियों-उपन्यासों में भारतीय गांवों के बाशिंदों विशेषकर किसानों के जिस हाल का बयां किया, वह आज भी जस की तस है। तकनीक भले टेलीग्राम से मोबाइल फोन तक पहुंच गई हो, मगर अभी भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो भूखे पेट सोने को विवश हैं। अरे, मैं भी किन चिंताओं-दुश्चिंताओं में खो गया, ये तो शाश्वत समस्याएं-स्थितियां हैं, जो सनातन काल से चली आ रही हैं और अनवरत काल तक चलती रहेंगी। मैं जिस मुद्दे पर बात करना चाहता था, वह तो पीछे ही छूट गया। तो मैं इस बात पर खुश हो रहा हूं कि इन अखबारों-पत्रिकाओं के वषॅ 2007 की विदाई वाले विशेषांक में जिन प्रमुख मुद्दों पर फोकस किया गया, उनमें ब्लॉग भी महत्वपूणॅ था। ब्लॉग और ब्लॉगसॅ तथा ब्लॉगों में उठाए गए विषयों को भी पूरी शिद्दत से उठाया गया और उसपर माकूल चरचा की गई। मुझ सहित मेरे कई मित्र उन विशेषांकों के लेखों में अपने ब्लॉग के नाम के महज एक शब्द के आने से बल्लियों उछल से गए। मुझे इस सबसे बढ़कर यह लगा कि एक विधा जब दूसरे समानांतर विधा में स्थान पाती है तो इसका मतलब होता है कि उसे स्वीकार किया जा रहा है। ब्लॉग की बात रेडियो, टेलीविजन चैनलों, पत्र-पत्रिकाओं में होना इसके महत्व को स्थापित करता है। इसके बावजूद, मेरा मानना है कि बिना उपादेयता-उपयोगिता के स्वीकायॅता भर से ही काम नहीं चल सकता। कितना सुखकर लगता है जब ब्लॉग पर हम अपनी कोई समस्या या जिज्ञासा रखते हैं और अपने ब्लॉगर बंधु कुछेक पलों में उसका समाधान प्रस्तुत कर देते हैं। अभी-अभी तीन-चार दिन पहले दिल्ली से प्रकाशित हिंदी दैनिक हिंदुस्तान की एंकर स्टोरी थी कि भूगोल के अध्यापकों ने ब्लॉग के जरिये भूगोल को पढ़ाने का तरीका ईजाद किया है औऱ यह प्रयास छात्रों में लोकप्रिय भी हो रहा है। ऐसा ही चलता रहा, इंटरनेट की पहुंच हिंदीभाषी इलाकों में जन-जन तक हो गई तो वह दिन दूर नहीं जब ब्लॉग की अहमियत और भी बढ़ेगी तथा ऑनलाइन डायरी के रूप में शुरू हुआ ब्लॉग का सफर सभी समस्याओं के त्वरित समाधान उपलब्ध कराएगा और हर किसी के लिए अपरिहायॅ हो जाएगा।
अभी तो कह रहा हूं- हो गई है बल्ले-बल्ले ब्लॉग की...
तब स्वर बदल जाएगा---हो जाएगी बल्ले बल्ले ब्लॉग की।
कितने कमरे!
6 months ago
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