
डीजीपी आनन्द शंकर
अपराधों पर अंकुश लगा है तो इसका कारण लोगों को रोजगार मिलना भी माना जा सकता है। पूरे बिहार में जिस बड़े पैमाने पर सड़कें बन रही हैं और दूसरे भी काम हो रहे हैं, उसमें हजारों लोगों को रोजगार मिला है। इसके अलावा राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (जिसमें महात्मा गांधी के नाम की बैसाखी भी लग गई है) से भी लोगों को जीने का सहारा मिला है। आमदनी बढ़ी है तो खर्च के रास्ते भी खुलने लगे हैं। कम दूरी की पैसेंजर बसों और जीपों में भी मोबाइल की बार-बार बजती रिंगटोन से सहज ही इसका अहसास हो जाता है। पिंकसिटी जयपुर में रहते हुए जितनी मोबाइल कंपनियों के बारे में जानता था, उनके अलावा भी यूनिनॉर, एसटेल सहित कई सारी मोबाइल कंपनियों ने बखूबी अपनी उपस्थिति बनाए रखी है। इनकी आपसी जंग में उपभोक्ताओं को अच्छी और बेहतर संचार सेवाएं मिल रही हैं। जो गांव पचासों वर्ष से टेलीफोन के खंभे के लिए तरस गए थे, उन्हीं गांवों में आज तीन-चार कंपनियों के टावर कोसों दूर से नज़र आते हैं। नेटवर्क की कहीं कोई समस्या नहीं है। हां, बिजली की कमी के कारण कई बार सेलफोन को चार्ज करने की समस्या उत्पन्न हो जाती है। आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है, इस तर्ज पर मोहल्लों में जेनरेटर प्रदाताओं ने शाम के समय महज दो-तीन रुपए रोजाना की दर पर अंधेरा भगाने की व्यवस्था कर रखी है। मोबाइल हैण्डसेट बनाने वाली कंपनियां नित नए ऐसे हैण्डसेट लांच कर रही हैं, जिनके सहारे बिहार में बिजली सप्लाई की अव्यवस्था के बावजूद मोबाइल निष्प्राण नहीं हो।
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