पूरी मरुधरा 23 मई से गुर्जर आरक्षण आंदोलन की आग में झुलस रही है। इस दौरान पुलिस फायरिंग में 23 और 24 मई को करीब 39 आंदोलनकारियों की मौत हो गई। इस आंदोलन के कर्णधार कनॅल किरोड़ी सिंह बैंसला के साथ गुर्जर समाज के हजारों लोग सिकंदरा और पीलू का पुरा में अपने परिजनों के शवों के साथ पड़ाव डाले बैठे रहे। उनकी मांग थी कि पड़ाव स्थल पर ही पोस्टमार्टम किए जाएं। अंतत: सरकार उनकी मांगों पर झुकी और सोमवार को शवों के पोस्टमार्टम किए गए। आंदोलनकारियों की संख्या चूंकि हजारों में है और भीड़ के भेजे को समझना आसान नहीं होता, इसलिए अभी भी यह कहना आसान नहीं है कि इन मृतकों का अंतिम संस्कार मंगलवार को या एक-दो दिन में हो ही जाएगा। मृतकों के परिजनों को सद्बुद्धि आए तो हो सकता है कि वे अपने प्रियजनों की माटी की ऐसी `माटी´ न होने दें तथा अंतिम संस्कार के लिए राजी हो जाएं। हालांकि इसकी उम्मीद करना बेमानी होगी कि मृतकों के पंचतत्व में विलीन होने के साथ यह आंदोलन भी खत्म हो जाए। अभी तक गुर्जर समाज के लोगों के जो तेवर दिख रहे हैं, उससे लगता है कि तीन दर्जन से अधिक युवाओं की मौत के बाद भी उनका जोश ठंडा नहीं पड़ा है और वे किसी भी हद तक कुरबानी के लिए तैयार हैं।
जो भी हो, यह संतोष का विषय है कि 10-11 दिन बाद ही सही, शवों का पोस्टमार्टम हो गया, अन्यथा उनकी तो दुर्गति ही हो रही थी। हर किसी का शव तो लेनिन की तरह नहीं होता, जिसे दशकों तक सुरक्षित रखा जा सके। आजादी के बाद जब हमारे नेताओं ने आरक्षण की व्यवस्था की थी तो उन्हें भी इसका भान नहीं रहा होगा कि आने वाले सालों में उनके उत्तराधिकारी इसकी मूल भावना को ही भूलकर बस वोटों की राजनीति के लिए इसका उपयोग करते रहेंगे। आजादी के छह दशकों बाद अब समय आ गया है जब पूरी आरक्षण प्रणाली पर विचार किया जाना चाहिए और हो सके तो राष्ट्रहित को सरवोपरि मानते हुए इस बीमारी को हमेशा के लिए खत्म ही कर दिया जाना चाहिए। समाज में जो वंचित-शोषित और दलित हैं, उन्हें सुविधाएं मुहैया कराने से किसी को एतराज नहीं होगा। बिना किसी जातिभेद के दलितों-शोषितों के बच्चों को पढ़ाई-लिखाई की अच्छी से अच्छी सुविधा उपलब्ध कराई जाए, जिससे वे समाज और शासन व्यवस्था में अपनी योग्यता के बल पर उच्च पदों पर आसीन हो सकें। इस पर हजारों करोड़ रुपए भी खर्च हों तो किसी को आपत्ति नहीं होगी। वैसे भी जब हमारी मनमोहनी सरकार के वित्त मंत्री पी. चिदंबरम का चित्त प्रसन्न हुआ और उन्होंने पहले 60 और फिर बाद में 71 हजार करोड़ रुपए किसानों की कर्जमाफी के लिए हवन कर çदए तो कौन क्या कर सका। ऐसे स्थानों का चयन किया जाए जहां वंचित-शोषित और दलितों की संख्या अधिक है तथा उन्हीं स्थानों पर उनके रहन-सहन और शिक्षा के बेहतर से बेहतर संसाधन उपलब्ध कराए जाएं।
आज आरक्षण की आंच धीरे-धीरे संपूर्ण भारतवर्ष को अपनी चपेट में ले रही है, जिसे भी देश से थोड़ा भी लगाव है, वह इस समस्या के इस तरह के समाधान को स्वीकार करने से नहीं हिचकेगा। राजनेताओं को व्यक्तिगत और दलगत हितों से ऊपर उठकर एक बार देशहित में सोचना ही पड़ेगा, अन्यथा आने वाली पीढ़ियां उन्हें माफ नहीं करेंगी।
आरक्षण की आग ने हमारे समाज को जिस तरह से अपनी जद में ले लिया है, समूची आरक्षण व्यवस्था का पोस्टमार्टम करना होगा और बेहतर तो यही होगा कि बिना इंतजार किए इसका अंतिम संस्कार भी कर दिया जाए।
कितने कमरे!
6 months ago
3 comments:
आप से सहमत पूरी तरह से। आरक्षण का पोस्टमार्टम करना होगा। लेकिन उस से पहले इसे निपटाने में बरसों लगेंगे। गुर्जर आंदोलन तो उस की मृत्यु की प्रथम सूचना है।
पर जब ये नेता समझे तब ना। आज थोडी देर पहले न्यूज़ मे देखा की गुर्जरों ने फ़िर से रेलवे ट्रैक जाम कर दिया है। और जिससे कई गाडियाँ रोक दी गई है।
मेरे हिसाब से आरक्षण बंद ही कर देना चाहिए.
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