बड़ी बहन शुक्रवार को संतोषी माता का व्रत रखती थी, इस कारण घर में खटाई, नींबू आदि के उपयोग की पूरी तरह मनाही होती थी। बाल मन न चाहते हुए भी प्रतिबंध मानने को मजबूर हुआ करता था क्योंकि ऐसा न करने पर प्रसाद से वंचित होना पड़ता था। स्थिति कुछ वैसी ही हुआ करती थी जैसी आजकल मलाई मारने की मजबूरी में वामपंथियों की यूपीए सरकार को समर्थन देने की है। बहन की मनोकामना पूरी होने के बाद उसने व्रत का उद्यापन कर दिया और शादी के बाद अब यदि दुबारा करती भी होगी तो उपरोक्त प्रतिबंध उसके ससुराल में ही लागू होते हो रहे होंगे।
घर में संतोषी माता के व्रत का उद्यापन हो जाने के बाद हमारे लिए सप्ताह के सारे दिन एक समान हो गए थे, लेकिन पिछले कुछ हफ्तों से शुक्रवार ने एक बार फिर से दिल का सुकून और दिमाग का चैन छीन लिया है। ऐसा लगता है कि शनिवार से एक दिन पहले ही शनि की ढैया और साढ़े साती का प्रकोप एक साथ प्रभावी हो गया हो। महान अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने जब से प्रधानमंत्री की गद्दी संभाली है, आम आदमी के लिए दो वक्त की दाल-रोटी का जुगाड़ कर पाना मुश्किल हो गया है। दिन-ब-दिन बढ़ती महंगाई के कारण आदमी अपनी आवश्यकताओं को सिकोड़ने को बाध्य हो गया है। हाउसिंग लोन पर बढ़े ब्याज दरों ने लोगों को किराये के घरों में सिर छुपाने को बाध्य कर दिया है। रही -सही कसर पिछले दिनों पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस की कीमतों में बढ़ोतरी ने पूरी कर दी है। हर सामान की कीमत बढ़ गई है। जनकल्याणकारी सरकार के मुखिया अरण्यरोदन कर रहे हैं। लोगों की जेब तो महीनों क्या, सालों से महंगाई की मार झेल ही रही थी, शुक्रवार यानी 20 जून को घोषित (7 जून को समाप्त हुए सप्ताह के लिए) मुद्रास्फीति की 11.05 प्रतिशत दर ने जैसे उसका पोस्टमार्टम रिपोर्ट सार्वजनिक कर दिया। इसके बावजूद हमारे वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के एफएम पर एक ही धुन बजता रहता है-`महंगाई रोकने के प्रयास किए जाएंगे´। आज भी वे यही पुराना राग अलाप रहे थे। वे क्या प्रयास करेंगे और उनके प्रयास क्या रंग लाएंगे, यह तो आने वाला समय बताएगा, लेकिन अब तक के कटु अनुभव से तो यही सच समझ में आता है कि जब से यूपीए सरकार सत्ता में आई है, उसने महंगाई बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ने महंगाई का ठीकरा राज्य सरकारों के सिर फोड़ दिया। सोनिया ने उज्जैन में प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर में पूजा-अर्चना कर महाकाल से आगामी विधानसभा चुनाव (और आसन्न लोकसभा चुनाव में भी) में विजय का आशीर्वाद मांगा। 1.51 लाख रुपए की एक स्वर्ण शिखर दान देने की भी घोषणा की। उन्होंने अपने आज्ञाकारी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का बचाव करते हुए राज्य सरकारों पर मुनाफाखोरों तथा जमाखोरों के खिलाफ सख्ती से कारüवाई नहीं करने का आरोप लगाया। सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती हुई महंगाई के कारण जनता की दुर्गति का असली जिम्मेदार कौन है, इसका जवाब तो आने वाले चुनाव में जनता दे ही देगी, लेकिन तब तक यूपीए सरकार उसका कितना कचूमर निकालेगी, यह सोचकर भी डर लगता है।
ज्ञानी लोग कह गए हैं-चादर देखकर पांव पसारना चाहिए, लेकिन अब तो चादर की साइज घटती-घटती रूमाल सी हो गई है, उससे सिर ढंक जाए, वही काफी है, आपादमस्तक शरीर को ढंकने की तो उम्मीद करना ही बेकार है।
अब तो संतोषी माता से ही प्राथॅना है कि मनमोहनी सरकार को सद्बुद्धि दें कि वह महंगाई पर काबू पा सके या फिर आम आदमी के संतोष का सेंसेक्स इस स्तर पर ला दें कि उसे किसी चीज की चाहत ही नहीं रहे-रोटी-कपड़ा और मकान की भी नहीं। अन्यथा अब तक तो विदभॅ व अन्य स्थानों के किसान ही आत्महत्या करने को बाध्य थे, अब हर आदमी महंगाई की मार से मुक्ति पाने के लिए कहीं मौत को गले लगाने को मजबूर न हो जाए।
डर को धूल चटाकर जीता आसमान
5 years ago