Sunday, March 8, 2009

सबके थे गिरधारीलाल


जीवन अनिश्चित है और मौत ध्रुवसत्य है, लेकिन इस तथ्य को हम सभी झुठलाते रहते हैं। इस कटु सत्य का अहसास तभी होता है जब कोई गुजर जाता है। राजनीति से मेरा कोई विशेष लगाव नहीं रहा है लेकिन गुलाबी नगर में अपने 14-15 वर्ष के प्रवास के दौरान यहां के सर्वप्रिय सांसद गिरधारी लाल भार्गव की लोकप्रियता से अवश्य ही प्रभावित था। संसद में उनकी भूमिका कितनी प्रभावी रही, इसका आकलन तो राजनीति के पंडित करेंगे, लेकिन हर छोटे-बड़े, व्यक्तिगत-सामूहिक कार्यक्रमों में भार्गव की उपस्थिति उन्हें सहज ही आमजन में लोकप्रिय बनाती थी। कई कार्यक्रमों में उन्हें देखने-सुनने का मौका मिला, लेकिन कभी नहीं लगा कि यह व्यक्ति कभी `आम´ की बजाय खास बनने की इच्छा जता पाता हो। शायद यही वजह थी कि भाजपा ने उनकी लोकप्रियता का लाभ उठाते हुए छह बार सांसद बनने के बाद उन्हें लगातार सातवीं बार भी टिकट दिया था, लेकिन सत्ता में आने के बाद उनकी वरिष्ठता का लाभ नहीं दे पाई। आज के जमाने में जब एक पार्षद और पंच भी जीतने के बाद आम जनता से दूरी बना लेता है, अपने मतदाताओं से `दूर´ हो जाता है, भार्गव देश की सबसे बड़ी पंचायत के सदस्य होने के बावजूद अपने क्षेत्र की जनता के लिए सर्वसुलभ थे।