Thursday, May 29, 2008

...आखिर चुप होने का क्या लेंगे लालू


राजनेताओं में सबसे बड़े मसखरे लालू प्रसाद यादव गुरुवार को एक बार फिर मीडिया में छाए रहे। टीवी चैनल वालों को तो बस लालू यादव की बाइट चाहिए, भले उनके बयानों के दुष्परिणाम उनके सूबे के लाखों लोगों को भुगतना पड़े। हां तो लालू जी ने कहा कि वे मुंबई में छठ मनाकर मानेंगे। शाहरुख खान के `क्या आप पांचवी पास से तेज हैं?´ कार्यक्रम में भाग लेने गुरुवार को मुंबई पहुंचे लालूप्रसाद यादव ने राज ठाकरे की धमकियों को दरकिनार करते हुए कहा कि वे मुंबई में ही छठ मनाएंगे। उन्होंने कहा कि छठ पूजा से वे सांस्कृतिक रूप से जुड़े हैं और इस त्यौहार को देश के किसी भी कोने में मनाया जा सकता है।
अब कुछ कड़वी हकीकत पर नजर डालें तो पता चलेगा कि बिहार का बहुत बड़ा तबका लालू यादव (और फिर राबड़ी देवी) के सुशासन के कारण घर-बार छोड़कर दो जून की रोटी के लिए दो सौ से दो हजार किलोमीटर दूर रहने को मजबूर हैं। बिहार के वयोवृद्ध ख्यातनाम साहित्यकार ने कुछ दिनों पहले जनसत्ता में दिए साक्षात्कार में राजकपूर की फिल्म `तीसरी कसम´ का हवाला देते हुए कहा था कि बिहार के लोगों ने घर न लौटने की `चौथी कसम´ खाई हुई है। लालू के शासन में जिनका भला हुआ, उनकी संख्या अंगुलियों पर गिनने लायक भले ही हो सकती है, लेकिन उन्होंने किन तरीकों से अपना भला किया, यह भी किसी से छिपा हुआ नहीं है। अपहरण-डकैती-रंगदारी का पर्याय बन गया था बिहार। वहां की सड़कों का जो बंटाधार हुआ, उसका अहसास उन लोगों को अवश्य ही हुआ होगा, जिन्होंने वहां यात्रा की हो या फिर चैनलों पर उसके दीदार नहीं हुए हों।
अब आते हैं छठ की बात पर। मैंने पहले भी कभी अपने ब्लॉग में एक बार कहा था और अब भी कह रहा हूं कि छठ न तो बिहार की संस्कृति का परिचायक है और न ही शक्ति प्रदर्शन का अवसर। यह तो भगवान भास्कर के प्रति अटूट आस्था का पर्व है जिसमें केवल और केवल आस्था की ही प्रधानता होती है, दिखावा नहीं। लालू यादव जब मुख्यमंत्री बने तो शायद एकाध बार उन्होंने पटना में गंगा किनारे छठ पर्व मनाया हो, लेकिन जैसे-जैसे उनका रुतबा बढ़ा, वे मास से क्लास होते हुए अपने आवास परिसर में ही पोखर खुदवाकर छठ मनाने लगे और आज तक यह परंपरा जारी है। इतना ही नहीं, उनके शासनकाल में पटना में गंगा की जितनी दुर्गति हुई, वह किसी से छिपी नहीं है। पटना में दिन-ब-दिन गंगा मैया श्रद्धालुओं से दूर होती गई और अब पिछले साल अखबारों में ही मैंने खबर पढ़ी थी कि गंगा की सफाई के लिए भगीरथ प्रयास किए गए।
वैसे भी छठ ऐसा पर्व नहीं है कि किसी पर्यटन स्थल पर जाकर मनाया जाए। सामान्यतया लोग अपने घरों के आसपास स्थित नदियों, नहरों, तालाबों के किनारे ही यह पर्व मनाते हैं। हां, कुछ लोग अवश्य ही बिहारशरीफ के पास स्थित सूर्य मंदिर परिसर में भी छठ पर्व मनाने के लिए जुटते हैं। पर्यटन के लिहाज से कोई किसी स्थान विशेष पर यह पर्व मनाने नहीं जाता। मुंबई में भी वही लोग छठ मनाते हैं जो आजीविका कमाने के सिलसिले में वहां रह रहे हैं। इसमें स्थानीय लोग भी उनकी मदद करते हैं और दशकों से इस पर्व के अवसर पर सौहादॅ बिगड़ने की कोई छोटी भी घटना भी नहीं हुई, क्योंकि व्रतियों और उनके परिजनों का एकमात्र उद्देश्य पूर्ण आस्था से सूर्य-आराधना करना ही होता है।
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे भले ही छठ पर्व को शक्ति प्रदर्शन का परिचायक मानते हों, लेकिन यदि लालू जैसे बड़बोले बात-बेबात उनके बयानों पर प्रतिक्रिया जताना छोड़ दें तो एकतरफा तो कोई बोलने से रहा। फिर राष्ट्र से बढ़कर महाराष्ट्र को मानने वाले राज ठाकरे पर नियंत्रण के लिए कानून भी तो है। लालू जिस तरह बार-बार उनके बयान पर छठ के समय जो होना होगा, हो जाएगा, अब जो पांच-छह महीने बचे हैं, उसमें बार-बार इस तरह के बयान देकर लालू इसे तूल न दें। वैसे भी पिछले दिनों महाराष्ट्र में मनसे की ओर से की गई हिंसक वारदातों के कारण बिहार के जो लोग अपनी रोजी-रोटी छोड़कर मुंबई, पूणे, नागपुर से वापस लौटने को विवश हुए, उनके पुनर्वास के लिए लालू ने कुछ भी नहीं किया होगा, तो फिर उनका क्या हक बनता है कि वे इस तरह के बयान देकर मुंबई और दूसरे शहरों में रह रहे लोगों के भी परेशान होने का रास्ता खोल दें। श्रद्धेय लालू यादव से सादर निवेदन है कि वे अपना मुंह बंद रखें और अनाप-शनाप बोलकर बिहारवासियों के माउथपीस न बनें।

1 comment:

sushant jha said...

बिल्कुल सही...इन्ही नेताओं ने हमारी पीढ़ी को बर्वाद किया है..जिस वजह से हम दूसरे जगह अपमान झेलने पर मजबूर हुए हैं..और इन्हे फिर भी गाल बजाते शर्म नहीं आती...मुझे याद आता है मेरे एक भाई सुलभ इंटरनेशनल में मध्यप्रदेश में काम करते थे..वहां के एक आदमी ने कहा कि क्या ये कम है कि मध्यप्रदेश का आदमी बाहर नही मिलता...और बिहारी तो हर शहर में झुंड के झुंड मिल जाएंगे..ये लालूओं और जगन्नाथों की करतूत है जिस वजह से हमारी ये हालत है...इतिहास में इनके नाम शर्म का एक इतिहास जरुर होगा..