Saturday, December 1, 2007

जोंक को मत गरियाइए, बड़े काम की चीज


सूदखोर महाजन, रिश्वतखोर अफसर, भ्रष्टाचारी नेता का जिक्र आते ही हम बेसाख्ता कह उठते हैं कि ये जोंक की तरह भोली-भाली निरीह जनता और हमारे देश का खून चूस रहे हैं। अभिधा से व्यंजना तक की सफर तय करता हुआ यह मुहावरा रूढ़ अथॅ में प्रयुक्त होने लगा है। बात कुछ हद तक सही भी है, लेकिन हकीकत इसके इतर भी कुछ है। पिंकसिटी के निवासियों के स्वास्थ्य की सुध ली यहां के आयुरवेद विभाग ने औऱ लगाया आरोग्य मेला। स्वस्थ होने की चिंता से मैं भी मुक्त नहीं हूं, सो पहुंच गया इस मेले में। कई सारे स्वास्थ्यवधॅक उत्पादों के बारे में जानकारी ली, लेकिन जो सबसे अनूठी जानकारी मुझे मिली, उसे आपसे शेयर करना चाहता हूं।
एक स्टॉल पर जोंक की कई सारी फोटोज की प्रदशॅनी सी लगी हुई थी। एक जार में पानी, और उसमें रखे कई सारे जोंक। इस सबके बीच एक अधेड़ उम्र के सज्जन मेले में आने वालों को जोंक की उपयोगिता के बारे में बता रहे थे। लोगों में सहज जिज्ञासा थी और उत्सुकता भी। स्टॉल पर बैठे भिषगाचायॅ वैद्य पदमचंद जैन ने बताया कि सैकड़ों वषॅ पुरानी सुश्रुत संहिता नामक ग्रंथ के १३वें अध्याय में जोंक से चिकित्सा, जिसे जलौका चिकित्सा पद्धित कहा जाता है, का जिक्र किया गया है। इसमें एक श्लोक है--
सम्पृक्ताद् दुष्ट शुद्धा श्रात जलौका दुष्ट शोणितम्
आदत्ते प्रथमं हसः क्षीरं क्षीरोदकादिव।
वैद्यजी ने बताया कि जोंक की दो प्रजातियां होती हैं, विषैली और विषहीन। विषहीन जोंक में भी कपिला व पिंगला प्रजाति की जोंक इलाज में काम आती है। आयुरवेद व यूनानी चिकित्सा पद्धतियों में इसका व्यापक उल्लेख किया गया है। तो रोगी का उपचार कुछ यूं होता है कि शरीर के प्रभावित स्थान विशेष पर तीन-चार जोंक रख दिए जाते हैं, जो धीरे-धीरे दूषित रक्त को चूस लेते हैं। रक्तविकार दूर होने पर रोगी पूरी तरह स्वस्थ हो जाता है।
कुल मिलाकर बात यह है कि जोंक यदि अपनी इच्छा से आपका खून चूसती है तो यह आपके लिए नुकसानदेह हो सकता है, लेकिन यदि किसी विशेषज्ञ वैद्य की देखरेख में आप अपना दूषित रक्त जोंक से चुसवाएं, तो यह आपको आरोग्य कर सकता है (यदि आप रक्तविकार से पीडि़त हों)।
बचपन में तालाब में नहाने के दौरान या फिर धान के खेत में निकाई-गुड़ाई-कटाई के दौरान कई बार जोंकों ने मेरे पैर से लिपटकर मेरा भी खून चूसा है, लेकिन तब तो मैं उसके उपकार से अनजान था, सो --सठे साठ्य समाचरेत्--की तजॅ पर उसे पैर से छुड़ाता और जमीन पर रखकर उस पर नमक रख देता। थोड़ी देर में जोंक से खून निकलने लगता और पूरा खून निकलने के बाद उसका जीवनांत हो जाता। मेरा बाल-किशोर मन खुश हो जाता कि कर दिया हिसाब बराबर। तब मुझे कहां पता था कि यह जोंक मेरे चरणों से लिपटकर मेरा उपचार करने की अनुमति चाहता था।
खैर, बहुत हो चुका, आपमें से कइयों को आयुरवेद व यूनानी चिकित्सा पद्धित में निष्णात होने के कारण या फिर किसी परिचित-मित्र-परिजन द्वारा इस चिकित्सा पद्धति का लाभ लिए जाने के कारण पहले से इसकी जानकारी होगी, सो क्षमा चाहता हूं, लेकिन मैं यदि ऐसी जानकारी को सावॅजनिक नहीं करूंगा तो मेरी अल्पज्ञता की चरचा सरेआम कैसे होगी। हां, एक निवेदन और, अगली बार से जोंक से किसी की तुलना करने से पहले एक बार सोच लें कि उसमें कुछ अच्छाई भी है या नहीं, यदि उस व्यक्ति में केवल बुराइयां ही बुराइयां हों तो आप कृपया किसी और से उसकी तुलना करें, जोंक से नहीं.....और जोंक से तुलना करने के बिना काम न चले तो विषैले जोंक से करें तुलना।

2 comments:

राजीव तनेजा said...

जानकारी के लिए शुक्रिया....

"चलते रहें कदम दर कदम...

कॉफिला यूँ ही बढता जाएगा"

suresh said...

My Dear sir

good knowledge & information.

Thanking you.

Suresh Pandit, Jaipur